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भागलपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर और कहलगांव से 16 किलोमीटर की यात्रा कर, गंगा किनारे स्थित वशिष्टेश्वर धाम, जिसे गुप्त काशी के नाम से भी जाना जाता है, भक्तों और पर्यटकों के लिए एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है। इस पवित्र स्थान का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अद्वितीय है, जहां भोलेनाथ और मां काली का एक साथ दर्शन किया जा सकता है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग के सामने मां काली का मंदिर स्थित है।

इस प्राचीन स्थल के पुजारी पंकज झा बताते हैं कि यहां की भूमि सवा जौ कम होने के कारण काशी यहां से चली गई, नहीं तो इसे काशी कहा जाता। इसी कारण से पास के गांव का नाम कासड़ी पड़ा। मंदिर परिसर में स्थित एक प्राचीन गुफा भी है, जिसमें तीन हवनकुंड और तीन आसन स्थापित हैं। कहा जाता है कि इस गुफा में वशिष्ठ ऋषि, कोहल ऋषि और दुर्वासा ऋषि तपस्या किया करते थे।

वशिष्टेश्वर धाम का नामकरण भी वशिष्ठ ऋषि के नाम पर हुआ, क्योंकि यहां सबसे पहले महादेव की पूजा वशिष्ठ ऋषि ने की थी। इस क्षेत्र में दुर्वासा ऋषि का भी मंदिर स्थित है, जो इस धाम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। कहलगांव में स्थित शांतिकुंज, कोहल ऋषि का धाम है, और इस क्षेत्र को पहले कोहलगंज कहा जाता था, जो बाद में कहलगांव बना।

पुजारी पंकज झा ने यह भी बताया कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई होती थी, और संस्कृत मंत्रों की सिद्धि वशिष्टेश्वर धाम में की जाती थी, जिससे यह स्थान सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। वशिष्टेश्वर धाम का धार्मिक महत्व और गुप्त काशी का रहस्य इस पवित्र स्थल को एक अद्वितीय तीर्थस्थल बनाता है।

हर हर महादेव!

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