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नवगछिया : बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर गांव स्थित कोसी तटीय गुवारीडीह का टीला बेदह रहस्यमय है. आज भी दादी नानी की कहानियों में गुवारीडीह जीवंत है. कहानी कई तरह की है और चौकाने वाली भी. सच या फसाना कहना मुश्किल लेकिन, रहस्य तो है. क्या कारण है कि वर्षों से गुवारीडीह का टीला खेतों के मध्य में घनघोर जंगलों से भरा पड़ा है.


लोग तो इस टीले को महाभारत कालीन कहते हैं और यह भी कहा जाता है कि श्रापित अश्वस्थामा यहां रहा करता था. कुछ कितवंतियां दैत्यों के साथ जुड़ी हुई हैं. लोग बताते हैं कि एक समय था कि जब मां अपने शरारती बच्चों को डराती थी तो कहती थीं सो जाओ नहीं तो गुवारीडीह से राक्षस आ कर पकड़ लेगा. कुछ बूढ़े बुर्जुग कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था
कि गुवारीडीह का टीला 25 एकड़ के क्षेत्र में फैला था. जहां एक राजा के निवास स्थल के अलावा कई दरबारियों और आम लोगों का घर था.

बाढ़ के समय में गुवारीडीह को राजधानी बना दिया जाता था. यहां से बड़े जहाज का परिचालन कराया जाता था. गांव के युवक अविनाश कुमार और पैक्स अध्यक्ष विकास कुमार ने बताया कि वे लोग गुवारीडीह को कामा माता के मंदिर से जानते हैं. जब से होश संभाला एक खास उपलक्ष्य में कामा माता के मंदिर में वे लोग पूजा करने जाते थे. लेकिन पांच वर्षों में वह मंदिर अब जलविलीन हो गया है. मंदिर में रखी एक प्रचीन मूर्ति भी कोसी कटाव में बह गयी.कामा माता के बारे में ग्रामीण बताते हैं कि कामा माता मां दुर्गा का ही एक रूप है. जबकि कुछ लोग यह बता रहे हैं कि कामा माता एक लोक देवी है जो गुवारीडीह की ग्राम देवी है. गुवारीडीह में यह मंदिर कब से था इसके बारे में लोग बस इतना ही बता पा रहे हैं कि जब से उन्होंने होश संभाला मंदिर को देखा है. बुढ़े बुजुर्ग लोगों ने कहा कि उनके पूर्वज भी मंदिर स्थापना के संदर्भ में कुछ खास नहीं बता पाते थे. कहा जाता है कि उक्त मंदिर का इतिहास भी हजारों वर्ष पहले का रहा होगा. इन दिनों ग्रामीण स्तर से गुवारीडीह में एक पेड़ के नीचे कामा माता को स्थापित कर लोग पूजा अर्चना करते हैं.

गुवारीडीह में अब तक मिले पुरावशेषों के आधार पर साहित्यकार कह रहे हैं कि यहां की सभ्यता पांच हजार वर्ष पुरानी हो सकती है. साहित्यकार तो यहां
तक कह रहे हैं कि गुवारीडीह के पुरावशेष बता रहे हैं कि यह अंग प्रदेश की राजधानी चंपा की नगरीय सभ्यता की पृष्ठभूमि रही है. लेकिन इलाके के कुछ
बुद्धिजीवी बता रहे हैं कि गुवारीडीह बौद्ध सर्किट से जुड़ा है.विद्वानों ने बताया कि सम्राट अशोक के समय जब बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हुआ तो खगड़िया से लेकर कटिहार के बीच कोसी तटीय क्षेत्र में कई
स्थलों पर बौद्ध भिक्षुओं ने अपना निवास स्थान बनाया था.विदित हो कि आज से 10 माह पूर्व भी गुवारीडीह टिल्हे के तल से इसी तरह बड़ी संख्या में पुरावशेषों की प्राप्ति हुई थी जिसका मुआयना तिलकामांझी विश्वविद्यालय के पीजी प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ.बिहारीलाल चौधरी के नेतृत्व में पुराविदों के एक दल ने किया था.

जिसमें अंग क्षेत्र के शोधकर्ता पूर्व उप जनसम्पर्क निदेशक शिव शंकर सिंह पारिजात, एस एम कालेज के प्राचार्य इतिहासकार डॉ. रमन सिन्हा के साथ पीजी पुरातत्व विभाग के डॉ. पवन शेखर, डॉ. दिनेश कुमार व छात्र अविनाश और छात्रा रिंकी शामिल थे. गुवारीडीह पुरास्थल के शोध एवं विश्लेषण में पिछले दस महीनों से लगे पीजी पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी स्थल पर पायी गई पक्की ईंट निर्मित दीवारों की संरचना को देखकर
कहते हैं कि ये यहाँ पर नगर-अधिवास होने के द्योतक हैं. यहाँ पर मिले पुरा सामग्रियों के आधार पर उनका अनुमान है कि यह स्थल ताम्र-पाषाणिक काल
का अवशेष हो सकता है जो कि 5 हजार वर्ष पुराना है. गुवारीडीह में बड़ी संख्या में प्राप्त एनबीपीडब्ल्यू के आधार पर विभागाध्यक्ष डॉ. चौधरी का अनुमान है कि यह स्थल अंग जनपद (भागलपुर प्रक्षेत्र) की राजधानी चम्पा का विस्तार रहा होगा जो कि 2500 पुराना बुद्धकालीन होगा.

डॉ. चौधरी अपने अनुमान की पुष्टि में बताते हैं कि वर्ष 1960 में पटना विश्वविद्यालय के प्रख्यात पुराविद् प्रो. बीपी सिन्हा को चम्पा की खुदाई में इसी तरह के एनबीपीडब्ल्यू मिले थे जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि चम्पा और गुवारीडीह के बीच राजनीतिक और व्यापारिक संबंध रहे होंगे. यहाँ
उत्खनन कराने से सारे तथ्य उजागर हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि एक वर्ष पूर्व उन्होंने इसे हेतु राज्य के पुरातत्व विभाग से अनुरोध किया था, पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है. अंगक्षेत्र के इतिहास के जानकार शिव शंकर सिंह पारिजात ने कहा कि एक माह पूर्व बांका जिले के भदरिया में निकले पुरावशेषों संरक्षण-उत्खनन पर जिस तरह राज्य सरकार रूचि ले रही है,उसी तरह भागलपुर के गुवारीडीह के मुतल्लिक भी कार्रवाई करनी चाहिये क्योंकि पुराविदों के अनुसार भदरिया की तरह गुवारीडीह भी चम्पा-संस्कृति
का विस्तार है.

गुरवारीडीह में मिल रहे पुरावशेषों को निरंतर प्रभात खबर प्रमुखता से प्रकाशित करता रहा है. सबसे पहले प्रभात खबर ने ही गुवारीडीह से मिल रहे पुरावशेषों की खबर को पहले पन्ने पर प्रकाशित किया था. प्रभात खबर,गुवारीडीह की ऐतिहासिकता को एक मुकाम दिलाने के लिए दस माह से मुहिम चला
रहा है.

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