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नवगछिया : बदलते दौर में बहुत कुछ बदल गया। व्रत- त्योहारों पर आधुनिकता के रंग चढ़ गए। समय के साथ कई परंपराएं भी समाप्त हो गईं, लेकिन सूर्योपासना के महापर्व छठ में आज भी परंपराएं जीवित हैं। भागलपुर नवगछिया में भगवान सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देने के साथ साड़ी के आंचल पर नटुआ (पुरुष नर्तक) को नचाकर छठ माता का आभार जताने की परंपरा है। स्त्री का रूप धर पुरुष नर्तक को नचाने की यह परंपरा वर्षों से है। रोग से मुक्ति, संतान प्राप्ति व सुखमय जीवन के लिए व्रती छठ माता से मनौती मांगती हैं।

पूरी होने पर साड़ी के आंचल पर नटुआ को नचाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे छठ माता खुश होती हैं। सांध्यकालीन व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के दिन स्त्री का रूप धर पुरुष नर्तक व्रती महिला के आंचल पर करते नाच दिखते हैं। छठ घाट पर व्रती अर्घ्य देने के बाद आंचल पर नटुआ नाच कराती हैं। इसके लिए नर्तक व उसकी मंडली को पहले से बुक करना होता है। इसके लिए चार से पांच हजार रुपये तक खर्च करना पड़ता है।

व्रती के आंचल पर नाचने के बाद परिवार की अन्य महिलाएं भी आंचल पर अगर नटुआ नचाती हैं तो नर्तक उनसे नेग स्वरूप पैसे लेता है।

पिछले आठ साल से व्रत करने वाली एक व्रती का कहना है कि अपने घर-परिवार से जुड़ी कोई मनोकामना के लिए छठी माई से विनती करते हैं। जब वह पूरी हो जाती है तो उसके बदले में संकल्प पूरा किया जाता है। कोई मिट्टी का हाथी चढ़ाता है तो कोई केले का घौद चढ़ाता है। कोई कोसी भरता है तो कोई आंचल पर नाच करा छठी माई का आभार जताता है।

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