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केंद्र सरकार ने गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण पहल शुरू की है, जिसके तहत संकटग्रस्त डॉल्फिनों के इलाज और बचाव के लिए एंबुलेंस सेवा शुरू करने की योजना को मंजूरी दी है। यह योजना राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की राष्ट्रीय परिषद द्वारा हाल ही में अनुमोदित की गई, और इसे अब गंगा के प्रवाह वाले राज्यों में लागू किया जाएगा। इस योजना से भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य में रहने वाली शेष बची डॉल्फिनों को नई जिंदगी मिल सकती है, जो प्रदूषण और शिकारियों के कारण संकट का सामना कर रही हैं।

भागलपुर के पर्यावरण कार्यकर्ता दीपक कु सिंह इस योजना का समर्थन करते हुए कहते हैं, “विक्रमशिला अभ्यारण्य में 33 वर्षों से विलुप्त होती डॉल्फिनों को संरक्षण की आवश्यकता है। प्रदूषण और शिकारियों की क्रूरता इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन चुकी है। इस नई योजना से यहां के डॉल्फिनों को सहायता मिलनी चाहिए, जो समय रहते अपने अस्तित्व को बचा सकें।”

विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य, जो 1991 में अधिसूचित किया गया था, गंगा डॉल्फिन के लिए एक महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र है। यहां कभी डॉल्फिनों की बड़ी संख्या थी, लेकिन अब मात्र 150 से 180 डॉल्फिनों का ही अस्तित्व बचा है। इसके अलावा, भागलपुर के आसपास के अन्य क्षेत्रों जैसे कोसी, गंडक और महानंदा नदियों में भी डॉल्फिनों की उपस्थिति देखी गई है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर (डा.) सुनील चौधरी ने बताया कि गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र में डॉल्फिनों का वास शुरू से रहा है, और इन नदियों में इन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

डॉल्फिन रिसर्च सेंटर, पटना के निदेशक डॉ. गोपाल शर्मा ने कहा, “पिछले सर्वेक्षणों के अनुसार, विक्रमशिला अभ्यारण्य में करीब 150 से 180 डॉल्फिन की उपस्थिति पाई गई थी। हालांकि, ताजे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि अब तक कोई नया सर्वे नहीं हुआ है। लेकिन इस एंबुलेंस सेवा के माध्यम से इन डॉल्फिनों का जीवन बचाने में मदद मिल सकती है।”

गंगा डॉल्फिन की एक खासियत यह है कि ये सिर्फ मीठे पानी में रहती हैं और अंधी होती हैं। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियां उत्सर्जित कर मछलियों और अन्य शिकारों को पहचानती हैं। गंगा नदी में इनका संरक्षण, भारत, नेपाल और बांग्लादेश के लिए एक महत्वपूर्ण जैव विविधता मुद्दा बन चुका है।

केंद्र सरकार ने गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए एक विशेष एंबुलेंस सेवा शुरू की है, जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त डॉल्फिनों की पहचान करना, उनका इलाज करना और फिर उन्हें सुरक्षित जल में वापस छोड़ना है। यह एंबुलेंस एक विशेष प्रकार के वाहन होंगे, जो नौका के रूप में होंगे और इनमें उपचार के साधन मौजूद होंगे। इस परियोजना के तहत, डॉल्फिनों की संख्या बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा और उनके संरक्षण के प्रयासों को तेज किया जाएगा।

एनएमसीजी के अनुसार, गंगा डॉल्फिन की संख्या पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। प्रदूषण में कमी और संरक्षण प्रयासों के कारण इनकी संख्या में सुधार हुआ है, हालांकि पहले इनके अस्तित्व को लेकर गंभीर चिंताएं थीं। अब स्थिति बेहतर हो रही है और आने वाले समय में इन प्रयासों से विक्रमशिला अभ्यारण्य में डॉल्फिनों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।

बॉक्स खबर

गंगा नदी डॉल्फिन मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश की प्रमुख नदी प्रणालियों (गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु) में पाई जाती है।

विशेषताएं: गंगा नदी डॉल्फिन केवल मीठे जल स्रोतों में ही रह सकती है और यह दृष्टिहीन होती है। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियां उत्सर्जित कर मछलियों एवं अन्य शिकार को उछालती हैं, जिससे उन्हें अपने दिमाग में एक छवि बनाने में मदद मिलती है और इस प्रकार वे अपना शिकार करती हैं।

प्रमुख खतरे: डॉल्फिनों के लिए प्रमुख खतरे में मत्स्यन के जाल में फंसना, अवैध शिकार, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं शामिल हैं।

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