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भागलपुर के डिप्टी डेवलपमेंट कमिश्नर (डी.डी.सी.), प्रदीप सिंह द्वारा जेएलएनएमसीएच, मायागंज में संचालित “दीदी की रसोई” का निरीक्षण किया गया। यह रसोई जीविका के तहत स्व-सहायता समूह (एसएचजी) की महिलाओं द्वारा संचालित एक महत्वपूर्ण पहल है, जो उनके लिए आजीविका का एक सशक्त माध्यम बनकर उभर रही है।“दीदी की रसोई” का परिचय
“दीदी की रसोई” बिहार सरकार की एक अभिनव पहल है, जिसे जीविका के माध्यम से शुरू किया गया है। इस रसोई का संचालन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाएं करती हैं। इसका उद्देश्य महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।
महिलाओं के लिए लाभ
आजीविका का साधन: एसएचजी की महिलाएं इस पहल के माध्यम से नियमित आय अर्जित कर रही हैं।सशक्तिकरण: यह योजना उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती है।
क्षमता विकास: इस रसोई के संचालन के दौरान महिलाओं को व्यवसाय प्रबंधन, किचन संचालन और वित्तीय प्रबंधन में भी कौशल विकास का अवसर मिलता है।


अस्पताल में दीदी की रसोई का महत्व
अस्पतालों में ऐसी रसोई की उपस्थिति मरीजों और उनके परिजनों के लिए अत्यंत लाभकारी है: पोषण युक्त भोजन: रसोई में पौष्टिक और स्वच्छ भोजन उपलब्ध कराया जाता है, जो मरीजों के स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त होता है।
सुविधा: मरीजों और उनके परिजनों को गुणवत्तापूर्ण भोजन उचित मूल्य पर एक ही स्थान पर मिल जाता है।
स्थानीय रोजगार: अस्पताल में दीदी की रसोई का संचालन स्थानीय महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
डी.डी.सी. भागलपुर ने इस अवसर पर रसोई में भोजन की गुणवत्ता, साफ-सफाई और महिलाओं के कार्यप्रणाली का अवलोकन किया। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए इसे महिलाओं के सशक्तिकरण और अस्पतालों में मरीजों की सुविधा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि यह मॉडल अन्य सरकारी संस्थानों और स्थानों पर भी लागू किया जा सकता है दीदी की रसोई” न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह मरीजों और उनके परिजनों को स्वच्छ और सुलभ भोजन उपलब्ध कराने का भी महत्वपूर्ण माध्यम बन चुकी है। भागलपुर जिला प्रशासन इस तरह की पहलों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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