नवगछिया अनुमंडल के भ्रमरपुर स्थित दुर्गा मंदिर काफी शक्तिशाली एवं प्रसिद्ध है. मंदिर स्थित माता के आशीर्वाद से गांव के लोगों व श्रद्धालुओं को खुशहाली नसीब होता है. इनके आशीर्वाद से गांव के लोग बड़े-बड़े ओहदे पर विराजमान हैं. प्रखंड के भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर की स्थापना बीरबन्ना ड्योढ़ी के राजा बैरम सिंह ने वर्ष 1684 में करायी थी. उसके बाद 1765 में बैरम सिंह के दोस्त जमींदार मनोरंजन झा ने काली मंदिर के पास से मंदिर का स्थान परिवर्तन किया.
आजादी के पूर्व तथा बाद भी फूस का बहुत बड़ा मंदिर था जिसे 1973 में गांव के उग्रमोहन झा, अर्जुन प्रसाद मिश्र, परमानंद मिश्र, परमानंद झा एवं रमेश झा ( इन सभी का स्वर्गवास हो चुका है) के अथक प्रयास से सभी ग्रामीणों का सहयोग लेकर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. मंदिर के अंदर गर्भ गृह है जहां पर कलश की स्थापना की जाती है. आज भी बीरबन्ना ड्योढ़ी के वारिसों का डाला अष्टमी पूजा को आता है. गांव के ही हरिमोहन झा के परिवार के द्वारा प्रथम पूजा से अंतिम पूजा विजयादशमी के दिन तक पूजा के बाद बलि प्रदान की जाती है. यह काम उनके पूर्वजों के द्वारा होता आ रहा है. निशा पूजा तथा नवमी के दिन हजारों पाठा (बकरे) की बलि तथा भैंसे की बलि भी दी जाती है.
यहां खगड़िया, बेगूसराय, मधेपुरा, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों से भी भक्त माता को खोइछा चढ़ाने तथा पूजा करने आते हैं और संध्या आरती में भी शरीक होते हैं. नवमी के रात में हजारों भक्त मेला परिसर में रूककर रात में जागरण कार्यक्रम को देखकर अगले दिन पूजा अर्चना के बाद ही प्रस्थान करते हैं. विजयादशमी का विसर्जन तो अभूतपूर्व होता है. उस समय लाखों की भीड़ मंदिर परिसर में मौजूद रहती है. मंदिर के बगल में बसे सभी गोस्वामी परिवार इस मंदिर के पुजारी हैं.
सारे ग्रामीणों का सहयोग मंदिर समिति के सदस्यों को मिलता है. यहां बांग्ला व तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है. यह सिद्धपीठ माता का मंदिर है. यहां की भगवती बहुत शक्तिशाली है. पूजा खत्म होने के पश्चात् विजयादशमी के दिन विसर्जन बगल के पोखर में होता है. इस समय श्रद्धालु नम आंखों से विदाई देते हुए अगली बार पुनः आने का न्यौता देते हैं.