भागलपुर: यूं तो कोरोना ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है, लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र में इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य सरकार ने रखा था, लेकिन कोरोना ने इस पर ब्रेक लगा दिया है। इन दिनों लक्ष्य की ओर बढऩा तो दूर, टीबी मरीजों की पहचान तक नहीं की जा रही है। कोरोनाकाल में टीबी मरीजों की जांच और इलाज बाधित होने से अन्य लोग भी टीबी के शिकार हो सकते हैं। इससे डॉक्टर भी इन्कार नहीं कर रहे।
आधे से कम हो रही टीबी मरीजों की जांच
जिला यक्ष्मा विभाग और जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के टीबी विभाग में टीबी मरीजों की जांच आधे से भी कम हो गई है। जिला यक्ष्मा विभाग में प्रतिवर्ष तकरीबन तीन हजार मरीजों की जांच की जाती थी। कोरोना काल में करीब पांच सौ तक में जांच सिमट गई है।
जांच उपकरणों का टोटा
विभाग में केवल माइक्रोस्कोप से जांच की जा रही है। पहले सीबी नट मशीन से भी टीबी मरीजों की जांच की जाती थी। अब इस मशीन का इस्तेमाल संदिग्ध कोरोना मरीजों की जांच में हो रहा है। इसके अलावा विभाग के लैब टेक्नीशियनों को भी कई प्रखंडों में संदिग्ध कोरोना मरीजों की जांच के लिए लगाया गया है। इससे भी जांच प्रभावित है।
एक टीबी मरीज है भर्ती
जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट विभाग में कोरोनाकाल के पहले 10 से 15 लोगों की टीबी जांच की जाती थी। अब घटकर दो से तीन हो गई है। पहले 12 से 15 टीबी मरीजों को भर्ती किया जाता था। अभी सिर्फ एक मरीज भर्ती है। दवा लेने भी शहरी क्षेत्र के दो से तीन मरीज ही आते हैं। वहीं कोरोनाकाल के पहले टीबी की दवा लेने वाले की संख्या करीब 20 थी।
साधन के अभाव में नहीं आ रहे मरीज
लॉकडाउन की वजह से परिवहन साधनों का अभाव है। इस कारण भी प्रखंडों से टीबी मरीज दवा लेने नहीं आ रहे हैं। इसके अलावा कोरोना ही वजह से भी भय से लोग अस्पताल नहीं आ रहे हैं।
टीबी मरीज बढऩे की आशंका
जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट विभाग के डॉ. अमित आनंद ने कहा कि कोरोनाकाल में जांच और इलाज करवाने वाले टीबी मरीजों की संख्या आधी से भी कम हो गई है। इस स्थिति में स्वस्थ लोग भी टीबी से ग्रसित हो सकते हैं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।