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बिहपुर के कण कण में जीवंत हैं सुनील दा

बिहपुर की धरती ने अपना सच्चा बेटा खो दिया है. बिहपुर की धरती पर पत्रकार सुनील कुमार झा का शरीर भले ही न रहे लेकिन बिहपुर के कण कण में यह कर्म योगी आज भी जीवंत है. बिहपुर का इतिहास सुनील के बिना अधूरा है. सुनील दा ऐतिहासिक धरती बिहपुर के पहले पत्रकार थे. उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत ऐसे समय में की जब बिहपुर में पत्रकारिता का मतलब नंगे पांव कांटों पर चलने जैसा था. समाचारों के संकलन से लेकर संप्रेषण तक कई तरह की समस्याएं. उस वक्त की पत्रकारिता आज के पत्रकारिता की तरह आसान नहीं थी. वर्ष 2009 के बाद Android मोबाइल के चलन ने पत्रकारिता को काफी आसान बना दिया है. अब पत्रकार घर बैठे आसानी से सूचना या समाचारों का संकलन कर सकते हैं और उसे उतनी ही आसानी से संप्रेषण भी कर सकते हैं. सुनील दा ने जब बिहपुर से पत्रकारिता शुरू किया तो उस समय नवगछिया पुलिस जिले में संगठित अपराध अपने चरमोत्कर्ष पर था. नरसंहार, गैंगवार जैसी घटनाएं आम थी. गोलियों की थर्राहट में आम लोगों की आवाज दशकों पहले दब चुकी थी. ऐसे विपरीत माहौल में सुनील दा ने कलम को हथियार बनाकर आम लोगों की आवाज को मुकाम तक पहुंचाने का काम किया. सुनील दा सच ही कहा करते थे कि मैं मिशन पर हूं और मिशन पूरा होने के बाद मैं एक पल भी यहां नहीं रुकने वाला हूं. शायद सुनील दा का मिशन पूरा हो गया. मुझे भी सुनील दा के साथ काम करने का अवसर मिला. वर्ष 2004 में मैंने भी बिहपुर से ही अपने पत्रकारिता के करियर की शुरुआत दैनिक जागरण अखबार से किया.

उस समय हमलोग शाम 4:00 बजे तक हर हालत खबरों का पैकेट अखबार के कार्यालय तक भिजवा देते थे. शाम 4 बजते ही हम लोग बिहपुर के बाजार में एक जगह पर इकट्ठा होते थे. इसके बाद चाय की चुस्कियों के साथ सुनील दा अपने जीवन के अनुभवों और ज्ञान की बातों को साझा करते थे. इस तरह के बैठकों में अलग-अलग लोगों के आने जाने का सिलसिला चलता रहता था. कुछ लोग सुनील दा के साथ मजाक करने की धृष्टता भी कर देते थे. इसके बाद सुनील दा मुंह से निकले शब्द धधकते अंगारे या चुभती सुई से कम नही होते थे. देखते ही देखते मजाक करने वाले व्यक्ति के मुंह पर ताला लग जाता था और चुपके से निकल लेता था. समाजसेवा और शब्दों की दुनियां में सुनील दा इस कदर खोये कि ताउम्र अविवाहित रहे. वे कहा करते थे, मैंने जिसे दिल में बसा लिया है उससे सुंदर इस ब्रह्मांड में कोई भी स्त्री या लड़की नहीं है. मैं सुनील दा से बार बार पूछता कौन है वह ? वे कहते जगत की अधिष्ठात्री देवी माँ जगत जननी जगदम्बा से कोई अत्यधिक सुंदर हो तो तुम अभी बता दो. मैं चुप हो जाता था. ऐसा नहीं कि सुनील दा के जीवन में प्रेम नाम का शब्द आध्यात्म का रूप ले चुका था. सुनील दा का कहना था कि सृष्टि की प्रत्येक संरचना प्रेम के लायक है और हर मानव को उससे प्रेम करना चाहिए. सुनील दा बातचीत के दौरान अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में जाते तो वह जोर देकर एक वाक्य बोलते थे ” मैं किंग ऑफ रोमांस हूं” इसके बाद सुनील दा अपनी रूहानी प्रेम कहानियों से हम लोगों को रूबरू कराते थे.

उनकी हर प्रेम कहानी शाश्वत और अजन्मा थी. उनके किस्सागोई का ऐसा अंदाज था की करण जौहर, शाहरुख खान, राज कपूर के फिल्मों की प्रेम कहानियां कमतर थी. किसी भी महफिल में अगर उन्हें संबोधन का मौका मिल जाए तो उनकी भूमिका एक लुटेरे की होती थी. यह कहना ठीक होगा कि इलाका किसी का हो धमाका सुनील दा का ही होगा. मंच से उनके द्वारा कहे गए हर एक वाक्य श्रोताओं के दिल तक पहुंचते थे और श्रोता उन्हें तालियों के माध्यम से सुचित करते थे. मंच पर सच बोलने से उन्हें कभी गुरेज नहीं था, चाहे आयोजकों को खराब लग जाए तो लग जाए. एक बार ऐसा ही हुआ था. सुनील दा का संबोधन बिहपुर थाने के एक दरोगा जी को तार तार कर गया. दरोगा जी अनाप-शनाप बक गए. मुझे याद है सुनील दा ने दरोगा जी से खुलेआम कहा था, आप चंद दिन के लिए यहां नौकरी करने के ख्याल से आए हैं. कुछ दिनों में स्वतः आपका बोरिया बिस्तर बंध हो जाएगा. फिर ना तो आपको बिहपुर याद करेगा और न ही आप बिहपुर को याद कर पाएंगे. लेकिन सुनील बिहपुर का बेटा है और जहां इसके हक हुक़ूक़ की बात होगी, वहां सुनील बोलेगा, लिखेगा। कभी-कभी कुछ अपराधी तत्व सुनील दा की लेखनी से व्यथित हो जाते थे और उनके समक्ष प्रतिक्रिया व्यक्त करने की भूल कर बैठते हैं. फिर जो होता था वह देखने सुनने वालों के लिए किसी रोमांच से कम नहीं होता था. सुनील दा उस अपराधी से कहते थे, क्या तुम मेरी हत्या करने आए हो ? क्या तुम पिस्तौल भी साथ लाए हो ? लो कर दो मेरी हत्या ! सुनील का नाम शहीद की गिनती में आ जाएगा.

इसके बाद अगले का मुंह देखने लायक होता था लेकिन सुनील दा यही नहीं रुकते थे, वे जोर देकर कहते कान खोल कर सुन लो ” बिहपुर की धरती पर अगर कोई रंगबाज है तो उसका नाम सुनील है” अगला व्यक्ति दुम दबा कर वहां से निकल जाता था. बिहपुर का कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो सुनील दा से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं होगा. पांच वर्ष के बच्चे से लेकर 85 वर्ष तक के वृद्ध से उनकी व्यक्तिगत जान पहचान थी. कई अनुभव हैं, कई किस्से कहानियां है, अभी तो सुनील दा की डेली डायरी का भी जिक्र नहीं किया, उपरोक्त बातें, सुनील दा के साथ 20 वर्षों पुरानी जान पहचान का शून्य भी नहीं है. आज एक तरफ सुनील दा के चले जाने का दुख तो है लेकिन दूसरी तरफ इस बात से संतुष्ट हूँ कि सुनील दा जैसे लोग नश्वर नहीं होते हैं. वे बिहपुर के कण कण में जीवंत हैं. वे जीवंत हैं, मुझमें, आप में…………एक कर्म योगी के व्यक्तित्व और कृतित्व को मेरा प्रणाम 🙏🏼 ऋषव मिश्रा कृष्णा

मुख्य संपादक , जीएस न्यूज ।

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