चांद देखते ही रमजान का पाक महिना आरंभ हुआ। शनिवार की शाम में चांद देखा गया। चांद देखने के बाद रमजान का महिना आरंभ हुआ। रात इशा के नमाज में तरावीह पढ़ना भी आरंभ हुआ। सुबह सादिक से सेहरी कर मगरीब तक राेजा रखते हैं। पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लाल्लाहु अलैहे व सल्लम ने फरमाया है कि जब रमजान का महीना आता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते है। और जहन्नुम के दरवाजे को बंद कर दिए जाते है। शयतान को जकड़ दिया जाता है। उन्होंने कहा कि रमजानुल मुबारक के महीने में कुरान ए पाक नाजिल किया गया। इसी वजह से रमजानुल मुबारक के महीने को रब ताला कि बंदगी के लिए तरबियत का महीना करार दिया गया है।
नफ्स खाने-पीने और जिन्सी ख्वाहिशात को उकसाता है तो एक मोमिन अपने नफ्स की ख्वाहिशात को पूरा करने के बजाय अल्लाह तबारक ताअला के हुक्म कि तामील करता है। वह शहरी के बाद से लेकर सूर्यास्त तक अपनी ख्वाहिशात को रोकता है। और सूर्यास्त से शेहरी तक उन जायज ख्वाहिशात को पूरा करता है। पूरा महीना ऐसा करके वह अपने नफ्स को अल्लाह तबारक व ताअला की हुक्म की पैरवी के लिए तैयार करता है।रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।जिसमें तीस या उनतीस दिनों तक रोजे रखे जाते हैं।इस्लाम के मुताबिक, पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है,जो पहला,दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। अशरा अरबी का दस नंबर होता है।
पूरे रमजान के महिनों को तीन अशरे में बांटा गया हैं।
ह रमजान के पहले दस दिन (1-10) में पहला अशरा, दूसरे 10 दिन (11-20) में दूसरा अशरा और तीसरे दिन (21-30) में तीसरा अशरा बंटा होता है। सधुआ के मुफ्ती मु. मकबूल हुसैन ने बताया कि इस तरह रमजान के महीने में तीन अशरे होते हैं।पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है। और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है।रमजान के महीने को लेकर पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने कहा है, रमजान की शुरुआत में रहमत है,बीच में मगफिरत यानी माफी है और इसके अंत में जहन्नुम की आग से बचाव है।रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है।रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते हैं।रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नुम की आग से खुद को बचा सकते हैं।