0
(0)

भागलपुर का टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज परिसर, घंटाघर। वर्तमान पहचान कोविड सिटी सेंटर भागलपुर। बिल्डिंग नंबर 3। मंगलवार सुबह के साढ़े दस बजे हैं। गौराडीह प्रखंड के माछीपुर से एक भाई-बहन आए हैं। कोरोना संक्रमण का लक्षण पाए जाने के बाद उन्हें यहां सरकार की आइसोलेशन नीति के तहत यहां लाया गया है। देखने से दोनों 18 वर्ष से कम उम्र के प्रतीत होते हैं। वे कमरा नंबर 101 के आगे तकरीबन एक घंटे से खड़े हैं। वे कमरे के अंदर जाने से हिचक रहे हैं। पूछने पर बहन ने कहा, अंदर सफाई नहीं है… बेडशीट भी नहीं बदला गया है… इसमें तो कोई रहा होगा पहले… कमरे में जाएंगे तो रूम वाला कोरोना सब हमारे शरीर में घुस जाएगा… ढेर कोरोना शरीर में घुस गया तो मर ही जाएंगे ना?

बहन की हताशा और सवाल ने उससे दूरी बनाकर खड़े अन्य कोरोना मरीजों को भी हतप्रभ कर दिया। हालांकि दो-चार-दस दिनों से यहां रह रहे मरीजों ने इन नाबालिग भाई-बहन को संभालने-बहलाने और निरशा से उबारने की कोशिश शुरू कर दी। करीब आधे घंटे तक समझाने के दौर चलता है। इसी दौरान यहां पांच दिनों से ठहराया गया एक युवा मरीज कमरे के अंदर जाता है, दोनों बेड से बेडशीट हटाकर बाहर निकाल देता है और कहता है अब जाओ अंदर कोरोना तुम्हारे रूम से बाहर निकाल दिया। एक बुजुर्ग मरीज कहते हैं अभी तो तुम लोग ही हमारा परिवार हो, हमारे बच्चे हो। दस दिन ही तो काटना है यहां। चिंता मत करो, देखो हम तुम लोगों को ही अपना बाल-बच्चा समझकर यहां अपना आधा समय काट चुके हैं। हंसते-बतियाते रहो… भगवान सब को ठीक रखेंगे… रोगमुक्त करेंगे। करीब डेढ़ घंटे तक कमरे के गेट पर खड़े भाई-बहन थक जाते हैं। थकहार कर वे कमरे के अंदर बिना बेडशीट के बेड पर जाकर बैठ जाते हैं।

कोविड सिटी सेंटर में व्यवस्था की अव्यवस्था वाकई भारी निराशा पैदा करने वाली है। यहां का हर मरीज दिन में दो-चार बार सरकार को सिस्टम को कोंस जरूर रहा है कि जब व्यवस्था नहीं है तो मरीज को होम आइसोलेशन के लिए कहना चाहिए। ऐसा तो केंद्र सरकार का गाइडलाइन भी है।

दरअसल, कोविड सिटी सेंटर में ए सिमटोमेटिक मरीज यानी कम प्रभाव वाले मरीजों को आइसोलेट किया जा रहा है। अधिकतर वैसे मरीज हैं जो देखने-पूछने से पूरी तरह से स्वस्थ हैं। ये स्वस्थ ही वापस लौट जा रहे हैं, यह भी सच में भगवान की मर्जी ही है, उनका रहम है अन्यथा यहां संक्रमित मरीजों में और अधिक संक्रमण भर दिए जाने की पूरी व्यवस्था है। सरकार के किसी भी गाइड लाइन का यहां कोई अनुपालन होता नहीं दिख रहा है। मरीज आते हैं जाते हैं, लेकिन किसी कमरे को सैनिटइाइज करते यहां किसी मरीज ने नहीं देखा। बिल्डिंग 3 में जमीनी तल पर तीन शौचालय हैं पर मग एक ही है।

यहां की व्यवस्था कुछ यूं है। मरीजों को ठहराने के लिए तीन बिल्डिंग हैं। अधिकतर मरीज आते हैं। उनका नाम-पता आदि पूछकर किसी एक बिल्डिंग तक लाया जाता है। एक प्लास्टिक की थैली दी जाती है। इसें पारासिटामोल चार टेबलेट, एजिथ्रोमाइसीन पांच टेबलेट, एक बी काम्पलेक्श सीरप, एस्कोरबिक एसिड नामक विटामिन सी का पांच टेबलेट, एक साबुन, टूथ ब्रश, जिभ्भी, एक गमछा और एक जग होता है। मरीज का डॉक्टर या किसी चिकित्सा कर्मी से भेंट तक नहीं होता। हां, बिल्डिंग तक पहुंचाने वाला केयर टेकर कहता है कि देख लीजिएगा, जो रूम खाली हो उसमें रुक जाइए। दवा कैसे खाना है के सवाल पर उसका कहना होता है किसी दूसरे मरीज से पूछ लीजिए।

ख़बर साभार : दैनिक जागरण ,भागलपुर

Aapko Yah News Kaise Laga.

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Share: