पूरे 22 वर्ष हो गए रतन सिंह की शहादत को। घर की दीवारों पर सेना की वर्दी में टंगी इनकी तस्वीरें आज भी उन क्षणों की याद को ताजा कर देती है, जब गगनभेदी नारों के बीच तिरंगे में लिपटा रतन सिंह का शरीर घर पहुंचा था। ऑपरेशन कारगिल विजय के शहीद नवगछिया के गोपालपुर थाना क्षेत्र के तिरासी गांव निवासी बिहार रेजिमेंट के हवलदार रतन सिंह लड़ते हुए बलिदान हो गए थे। इनकी शहादत के बाद परिवार और गांव से बीस जवानों ने वर्दी पहन रतन सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि भेंट की। उनकी बहादुरी की चर्चा करते आज भी लोग नहीं थकते।
पिता की शहादत का मिला दुलार
रतन सिंह के बड़े बेटे रूपेश कुमार बताते हैं कि पिता की शहादत के वक्त मैं 20 का और छोटा भाई मंजेश कुमार 12 साल का था। चचेरे भाई रोहन कुमार, अंकित कुमार, अमित कुमार, राजीव कुमार और कमल कुमार की उम्र भी इसी के आसपास थी। सभी भाई खेलने-कूदने की उम्र से आगे निकले तो समझ बढ़ी और शहीद होने का पता चला। पिता की शहादत के किस्से सुन-सुनकर सभी बड़े हुए। स्कूलों में शिक्षकों से लेकर सहपाठियों तक से शहीद का बेटा-भतीजा होने का दुलार और सम्मान मिला। इससे प्रेरित होकर पांच चचेरे भाइयों में देश सेवा करने की जिद बढ़ी और सभी फौजी बनने में तल्लीन हो गए। फिर तो कारवां बन गया। गांव के 15 से ज्यादा युवा देश सेवा करने में जुट गए। इस समय सभी देश की शरहद पर तैनात हैं।
बेटा शिक्षक बन युवाओं को फौजी बनने के लिए करते हैं प्रेरित
रूपेश कुमार बताते हैं कि घर में बड़ा होने के कारण सभी भाइयों और दो छोटी बहनों की देखरेख मेरे कंधों पर ही थी। मां का भी ख्याल रखना था। इसके चलते फौज में जाने की इच्छा त्यागनी पड़ी। तब, चचेरे भाइयों ने देश सेवा करने की ठानी। मैं गांव में ही शिक्षक बनकर उनका मार्गदर्शन करने लगा।
गांव में सिटी बजाकर युवाओं को दौडऩे के लिए करते थे प्रेरित
रूपेश बताते हैं कि पिता जी गांव वालों को फौज में जाने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे। छुट्टियों में घर आते तो सुबह चार बजे ही जग जाते। सिटी बजाते हुए गांव में निकल पड़ते थे। सिटी की आवाज सुनकर गांव के बहुत सारे युवा उनके साथ मैदान जाते थे। मैदान में युवाओं को दौड़ व व्यायाम करवाते थे। फौज में भर्ती होने के तौर-तरीके बताते थे।
तब वर्दी पहनकर थाने पहुंच गए थे रतन सिंह
रूपेश बताते हैं कि गांव में एक बार दियारा क्षेत्र से पुलिस 90 भैंस पकड़ कर थाने लेकर चली गई थी। उस वक्त पिता जी गांव आए हुए थे। इसकी जानकारी मिलने पर सभी पशुपालक पिताजी के पास आए भैंस छुड़वाने के लिए फरियाद करने लगे। तब पिताजी सेना की वर्दी पहनकर थाने पहुंच गए और सभी भैंसों को छुड़ा लाए थे।
कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था
कारगिल युद्ध में 29 जून 1999 की मध्य रात्रि में बिहार रेजिमेंट को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाने की कमान सौंपी गई थी। 16 हजार 470 फीट की ऊंचाई पर जुबेर टॉप नामक चौकी को प्राप्त करने के लिए हवलदार रतन सिंह ने ऐड़ी चोटी लगा दी थी। दो जुलाई तक चली भीषण लड़ाई में दो पाकिस्तानी कमांडो और कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। बिहार रेजिमेंट के दस सैनिक घायल हुए थे। हवलदार रतन सिंह दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। रत्न सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1959 को हुआ था। 28 फरवरी 1979 को सेना में भर्ती हुए थे। सेवा काल के दौरान वे मुख्यालय 42 पैदल ब्रिगेड तथा 46 बंगाल बटालियन एनसीसी में भी पदस्थापित रहे।