5
(2)

मिथिलांचल के लोक पर्व में सुहाग का अनोखा पर्व मधुश्रावणी व्रत श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि आज सोमवार से शुरू हो रहा है  एवं यह पर्व पूरे 14 दिनों तक चलेगा यानी 18  जुलाई से 31 जुलाई तक चलेगा । इस पर्व  में मिथिला की नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु के लिए माता गौरी एवं भोलेनाथ की पूजा करती हैं । पूरे 14 दिनों तक चलने वाला यह व्रत बिना नमक का भोजन ग्रहण किया जाता है। इस पूजा में पुरोहित की भूमिका में भी महिलाएं ही रहती है। इस अनुष्ठान के पहला और अंतिम दिन वृहद विधि विधान से पूजा होता है।

ऐसी धार्मिक मान्यता है  कि इस दौरान माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। पूजा के माध्यम से सुहागन अपनी सुहाग की रक्षा की कामना करती है। गीत भजन आदि गाकर एवं भक्ति पूर्वक पूजा की जाती हैं । मधुश्रावणी के पूजा के दौरान हर एक दिन अलग-अलग कथाएं कही जाती है । इन लोककथा में सबसे प्रमुख राजा श्रीकर और उनकी बेटी की कथा है। मधुश्रावणी पूजा के दौरान ऐसी मान्यताएं हैं नवविवाहित आपने मायके चली जाती है और वहीं इस पर्व को मनाती है।

मैनी  के पत्ते, बांस का पत्ता, अर्पन आदि देकर पूजन स्थल को सजाया जाता है मिट्टी की नाग नागिन की आकृति बनाकर सुंदर रंगों से सजाया जाता है एवं हाथी की भी आकृति बनती है । पूजा के अंतिम दिन इसे जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। मान्यता है कि इस पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है पति पत्नी के बीच  प्रेम को दर्शाता है । पंडित आचार्य पंकज झा के अनुसार श्रावण शुक्ल तृतीया 31 अगस्त यानी मधुस्वामी व्रत के अंतिम दिन टेमी दागने  की भी अनोखी परंपरा है इसमें पति अपने पत्नी की आंखों को पान के पत्ते से ढक  देता और महिलाएं दिए की लौ से नवविवाहिता के घुटने को दागती है जिसे टेमी  दागना भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पति पत्नी के प्रेम भाव को दर्शाता है ।

Aapko Yah News Kaise Laga.

Click on a star to rate it!

Average rating 5 / 5. Vote count: 2

No votes so far! Be the first to rate this post.

Share: