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सैदपुर दुर्गा मन्दिर, गोपालपुर, भागलपुर , दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम श्री हरि कथा के चौथे दिन सर्व श्री आशुतोष महाराज जी कि शिष्या साध्वी अमृता भारती जी ने मीराबाई जी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए कहा की आंसू और आग का संगम थी मीराबाई । मीराबाई जिन्होंने न केवल भक्ति की पराकाष्ठा को छुआ अपितु संसार के समक्ष है, प्रभु प्राप्ति के ऐसे सत्य को उजागर किया। जिससे मानव समाज अनभिज्ञ था। मीराबाई जी ने परंपराओं के नाम पर किए जाने वाले पशु बलि प्रथा का घोर विरोध किया । समाज ने मीराबाई जी का अनेकों प्रकार से विरोध किया, लेकिन परवाह किए बगैर आगे बढ़ती रही, जिस काल में मीराबाई जी ने समाज के प्रांगण में कदम रखा उस समय नारियां खुली हवा में सांस भी नहीं ले पाती थी।

स्त्रियां चार दीवारी के भीतर लोक लज्जा के घुंघट में, घुटने को विवश थी। सती प्रथा जैसी घिनौनी कुप्रथाएं, उन पर जबरन थोप दी जाती थी। मीराबाई जी ने नारी की इस मूक दर्द को वाणी दी ,सामाजिक दुर्व्यवहार के विरुद्ध बुलंद आवाज उठाई और कहा भी यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता भी रमन करते हैं। शिष्य स्वामी यादवेंद्रानंद जी जी ने कहां की मीरा के प्रेम के कारण भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते तथा बातें करते थे, परंतु यह सब नन्हीं – नन्ही मीरा को भक्ति मार्ग पर दृढ करने के लिए था परंतु जब मीरा बड़ी हो गई तब भगवान श्री कृष्ण स्वयं प्रकट होकर उसे तत्वज्ञान के लिए प्रेरित करते हैं और संत रविदास जी का पता भी देते हैं।

संत रविदास जी से तत्व ज्ञान प्राप्त करके कृष्ण दीवानी मीरा के अंदर से ऐसे उदगार फूटे की पायोजी मैंने राम रतन धन पायो अर्थात मैंने ऐसे धन को प्राप्त किया जिसे चोर चुरा नहीं सकता लूटेरा लूट नहीं सकता ऐसा धन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही रहता है। सद्गुरु
रविदास जी कि शरणागति को प्राप्त कर मीराबाई गा उठी । मोहेदुर्गा मन्दिर, सैदपुर, गोपालपुर, भागलपुर , दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम श्री हरि कथा के चौथे दिन सर्व श्री आशुतोष महाराज जी कि शिष्या साध्वी अमृता भारती जी ने मीराबाई जी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए कहा की आंसू और आग का संगम थी मीराबाई । मीराबाई जिन्होंने न केवल भक्ति की पराकाष्ठा को छुआ अपितु संसार के समक्ष है, प्रभु प्राप्ति के ऐसे सत्य को उजागर किया। जिससे मानव समाज अनभिज्ञ था। मीराबाई जी ने परंपराओं के नाम पर किए जाने वाले पशु बलि प्रथा का घोर विरोध किया । समाज ने मीराबाई जी का अनेकों प्रकार से विरोध किया, लेकिन परवाह किए बगैर आगे बढ़ती रही, जिस काल में मीराबाई जी ने समाज के प्रांगण में कदम रखा उस समय नारियां खुली हवा में सांस भी नहीं ले पाती थी। स्त्रियां चार दीवारी के भीतर लोक लज्जा के घुंघट में, घुटने को विवश थी। सती प्रथा जैसी घिनौनी कुप्रथाएं, उन पर जबरन थोप दी जाती थी। मीराबाई जी ने नारी की इस मूक दर्द को वाणी दी ,सामाजिक दुर्व्यवहार के विरुद्ध बुलंद आवाज उठाई और कहा भी यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता भी रमन करते हैं।

शिष्य स्वामी यादवेंद्रानंद जी जी ने कहां की मीरा के प्रेम के कारण भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते तथा बातें करते थे, परंतु यह सब नन्हीं – नन्ही मीरा को भक्ति मार्ग पर दृढ करने के लिए था परंतु जब मीरा बड़ी हो गई तब भगवान श्री कृष्ण स्वयं प्रकट होकर उसे तत्वज्ञान के लिए प्रेरित करते हैं और संत रविदास जी का पता भी देते हैं। संत रविदास जी से तत्व ज्ञान प्राप्त करके कृष्ण दीवानी मीरा के अंदर से ऐसे उदगार फूटे की पायोजी मैंने राम रतन धन पायो अर्थात मैंने ऐसे धन को प्राप्त किया जिसे चोर चुरा नहीं सकता लूटेरा लूट नहीं सकता ऐसा धन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही रहता है। सद्गुरु
रविदास जी कि शरणागति को प्राप्त कर मीराबाई गा उठी । मोहे लागी लगन गुरु चरणन की, फिकर नहीं भव तरनन की।लागी लगन गुरु चरणन की, फिकर नहीं भव तरनन की। गायक श्री गोपाल जी तबलाबादक प्रवेश जी पेडवादक, चंदन सिंह,सितली भारती, लक्ष्मी भारती, पुष्पा भारती,

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