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ऋषव मिश्रा “कृष्णा”, मुख्य संपादक , जीएस न्यूज

नवगछिया – जिसने भी पत्रकार आशीष को जाना वह उसके जिंदादिली और उसकी बेबाकी का कायल हो गया. आशीष के शब्दकोश में फिक्र, समस्या, चिंता, गम, बाधा जैसे शब्द नहीं थे. पत्रकारिता हो या घर गृहस्थी हर काम लगन से करना आशीष की फितरत थी. समाज के प्रति वह तटस्थ था. कहीं कहीं वह अपनी खामोश उपस्थिति से भारी पड़ता था तो कहीं कहीं अपनी वाकपटुता के बल पर अलग छाप छोड़ देता था. आशीष के नजदीकी कहते हैं कि आशीष ने आज तक दुश्मन नहीं बनाया यही कारण है कि आशीष के दोस्तों की सूची काफी लंबी है.

आशीष कहां करता था पत्रकारिता उसका पेसा नहीं है, पत्रकारिता उसका धर्म है. सुदूर गांव की आवाज को जब वह अपने अखबार के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने में सक्षम रहता तो सुबह वह काफी खुश नजर आता था, मानो उसने एक बड़ा जंग जीत लिया हो. नारायणपुर से आशीष ने कई अविस्मरणीय रिपोर्टिंग की जो आज भी यादगार है और समय के पटल पर दर्ज है. लेकिन आशीष इतनी जल्दी चला जाएगा इसकी उम्मीद किसी को ना थी, अभी तो उसने आगाज ही किया था. आशीष पर कितनी सटीक बैठती है ये लाइन – बड़े शौक से सुन रहा था जमाना ये फसाना तुम्हारा, पर तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते….

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