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200 वर्षों से हो रही है भवानीपुर के आपरूपी मां दक्षिणेश्वरी काली मंदिर में पूजा

नवगछिया रणवीर कश्यप

नवगछिया अनुमंडल के रंगरा प्रखंड के भवानीपुर पंचायत में 200 वर्षों से हो रही है। भवानीपुर के आपरूपी मां दक्षिणेश्वरी काली मंदिर में पूजा। बताते चलें कि सोनार परिवार के बच्चे ने खेल-खेल में मिट्टी से मां काली की मूर्ति बनाई और मां काली का नाम लेकर जयकारा लगाना शुरू कर दिया। उसी बीच कुछ बच्चों ने वहां पर चढ़ रहे पाठा को पकड़ कर लाया और उससे खेल-खेल में ही मां काली की जयकारा लगाते हुए पाठा के गर्दन पर कुश से प्रहार कर दिया। और पाठा का गर्दन धड़ से अलग हो गया। यह दृश्य को देखते ही सभी बच्चे घबरा गए। और भागकर अपने घर मां बाप को आपबीती दृश्य की कहानी बताने लगे। यह सुनते ही सभी बच्चों के मां-बाप उस जगह पर पहुंच गए। और वह लोग भी इस भयावह दृश्य को देखकर अचंभित हो गए। और देखते ही देखते हजारों की संख्या में उस जगह लोग इकट्ठे हो गए।

आए हुए सभी लोगों ने कहा कि मां काली की पूजा अर्चना करना आरंभ कर दो सभी लोगों ने मां काली की जय कारा करते हुए पूजा-अर्चना शुरू करवा दिया। फिर उसी रात बालमुकुंद पोद्दार के पिता भूसी पधार को स्वप्न में आकर मां दक्षिणेश्वरी काली ने दर्शन दिया और कहा कि मेरी मंदिर बनवाकर प्रतिमा स्थापित कर पूजा पाठ करो और भैंसे और पाठा की बलि दो तब पोदार परिवार ने अपने घर में ही मां दक्षिणेश्वरी काली की छोटी सी मंदिर बनवा कर प्रतिमा स्थापित की। और पूजा पाठ आरंभ कर दिया लगभग 25 से 30 वर्ष तक पोदार परिवार ने अपने घर पर ही पूजा पाठ किया। और असक्षम होने के कारण मंदिर को सार्वजनिक रूप से ग्रामीणों को समर्पित कर दिया। फिर ग्रामीणों ने मंदिर के लिए सभा बुलाकर पक्की मंदिर का नींव दिया। और चंदा इकट्ठा कर पक्की मंदिर का निर्माण किया और उसी वर्ष से पारम्परिक मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना धूमधाम से शुरू कर दिया।

नवगछिया बाजार से प्रतिमा बनाने के लिए आते हैं कलाकार 200 वर्षों से एक ही कुम्हार परिवार के वंशज जनार्दन पंडित मूर्ति को भव्य आकर्षक रूप दे रहे हैं।

भैंसे व पाठा की दी जाती है बली
कहते हैं बुजुर्ग भक्तों की मनोकामना पूरी होने पर भक्तगण मैया को भैंसे व पाठा की बलि चढ़ा कर चंदा तोड़ते हैं प्रत्येक वर्ष लगभग हजारों पठाओ की बलि व पांच से सात भैंसों की बलि दी जाती है।

मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से मां काली का सुमिरन कर मुराद मांगते हैं। और जब उनकी मुरादें पूरी हो जाती है। तो बलि के साथ साथ सोने व चांदी की बिंदी, नाथ व टीका, मुंडमाला, झांप पायल सहित अन्य तरह के चढ़ावा चढ़ाते हैं।

वही मैया के दरबार में खूबसूरत मेले में विभिन्न प्रकार के झूले मनिहारा की दुकाने,मिठाइयों की दुकाने,चाट की दुकाने व मुड़ी कचरी की दुकाने मेले को एक विशेष प्रकार का आकर्षक रूप दे देती है।

वही बताते चलें कि मंदिर प्रांगण में स्वर्गीय योगी नाथ झा के पूर्वजों ने एक विशाल दैविक कुएं का निर्माण अपने से किया। वहीं कुछ बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया कि इस कुएं के पानी को पीने से घेघा नामक बीमारी का खात्मा हो जाता था। इसलिए आसपास के सभी गांव के लोग इस पानी को अपने घरों में ले जाकर पिया करते थे। और घेघा नामक बीमारी से मुक्ति पा लेते थे। साथ ही बुजुर्गों ने यह भी बताया कि इस कुएं में मां की ऐसी महिमा थी कि इसे ढोल बाजे के साथ सोने की कलसी मध्य रात्रि में निकल कर कीर्तन भजन करते हुए भवानीपुर के पोठिया बहियार जाती थी। कुछ क्षण बाद पुनः वापस कुएं में आ जाती थी।

काली पूजा कार्यक्रम*
24 अक्टूबर को दीपावली की रात्रि वैदिक मंत्रोच्चार के साथ प्रतिमा स्थापित होगी। दो दिवसीय मेले का आयोजन 25 एवं 26 अक्टूबर को होगा। 25 एवं 26 अक्टूबर को रात्रि 8 बजे से प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा देवी भक्ति जागरण व झांकी का भव्य आयोजन के अलावे 26 अक्टूबर को संध्या 5 बजे प्रकांड विद्वानों द्वारा बनारस की तर्ज पर शंखनाद से महाआरती का आयोजन होना तय है। वहीं 25 एवं 26 अक्टूबर को विराट दंगल का आयोजन दोपहर 1 बजे से किया जाएगा। जिसमें दूरदराज के पहलवान अपने बाजुओं की आजमाइश करते नजर आएंगे। 26 अक्टूबर को संध्या 7 बजे स्थानीय कालीघाट में प्रतिमा विसर्जन किया जाएगा।

पूजा समिति के सदस्यों में से मंदिर व्यवस्थापक प्रशांत कुमार, राम जी पोद्दार, हरिकिशोर झा, मुख्य पुजारी पंडित प्रभात झा, मंदिर के पुजारी अमित झा, सुबाली यादव, कैलाश यादव सहित अन्य सदस्य मेला व्यवस्था में लगे हुए हैं।

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