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बिहार सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत राजपत्रित या अराजपत्रित कर्मी व अधिकारियों को सरकारी मकान देने का नियम तय हो गया है। भवन निर्माण विभाग ने साफ कहा है कि अगर कोई भी कर्मी या अधिकारी इस नियम का उल्लंघन करता है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

विभाग ने तृतीय श्रेणी के आवास या केंद्रीय पुल कोटे से मिलने वाले सरकारी मकानों के आवंटन का नियम तय किया है। इसके अनुसार, अगर कोई सरकारी कर्मी सेवा से पदत्याग करता या उसे सेवा से बर्खास्त किया जाता है तो उसे एक माह तक सरकारी मकान में रहने का अधिकार होगा। वहीं पटना में रहने वाले किसी कर्मी का स्थानांतरण राजधानी से बाहर होगा तो उसे भी एक महीने का ही समय मिलेगा। जबकि सेवानिवृत्ति या सेवांत छुट्टी के मामले में कर्मियों को दो महीने तक मकान में रहने का अधिकार होगा। जबकि जिस कर्मी के नाम से मकान आवंटन हुआ है और उसकी मौत हो जाती है तो उसके परिजनों को अधिकतम छह महीने रहने की अनुमति दी गई है। 

दरअसल, विभाग की ओर से दिए जाने वाले मकानों में अधिक दिनों तक रहने का आवेदनों की भरमार है। इसलिए विभाग ने साफ कहा है कि जो नियम है, उससे किसी भी कीमत में अधिक दिनों तक सरकारी कर्मियों या उनके परिजनों को रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। तय अवधि का विस्तार नहीं किया जाएगा और इसका कोई प्रावधान भी नहीं है। 

तय अवधि से अधिक दिनों तक रहने का किराया हाल ही में कई गुना अधिक कर दिया गया है। कैबिनेट से पारित आदेश के अनुसार, तय अवधि के बाद  मकान में रहने को अवैध माना जाएगा। किसी पर यह आरोप साबित हो जाएगा तो इस परिस्थिति में मानक किराया का 30 गुना अधिक किराया लिया जाएगा। इस जुर्माने को माफ करने का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है। इसलिए कोई भी कर्मी या अधिकारी विभाग के समक्ष इस जुर्माने को माफ करने का आवेदन नहीं दे सकेगा। भवन निर्माण विभाग ने इस आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है। 

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