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भागलपुर/ निभाष मोदी

विदेशों में भी इस बार दिखेगी सूप व डाला पर मंजूषा कलाकृति

भागलपुर के अंगजनपद की धरोहर व लोककला मंजूषा पूरे विश्व में बहुत तेजी से अपनी पहचान बनाती जा रही है, यह लोककला बिहुला विषहरी चांदो सौदागर पर आधारित है, भागलपुर के मंजूषा कलाकार मनोज पंडित और उनके परिवार के सदस्यों के द्वारा इस बार महापर्व छठ पर 51 हजार कच्चे बांध के और डाला पर मंजूषा कलाकृति का निर्माण किया गया है, यह अपने देशों के कई राज्यों के अलावे विदेशों में भी इस बार मनोज पंडित की बनाई सूप और डाला पर मंजूषा कलाकृति दिखेगी। मंजूषा गुरु के नाम से जाने जाने वाले मनोज पंडित के निर्देशन में उनके परिवारों द्वारा 51 हजार कच्चे हरे बांस के सूप व डाला पर अंग छेत्र की लोक कला संस्कृति की कलाकृति को उकेरने का काम किया गया है,

यह सूप अपने देश के कई राज्यों के कई राजनेता आईएएस ,आईपीएस अधिकारियों के घर भेजा गया है साथ ही 108 सूपों को मंजूषा की कलाकृति देकर विदेशों में भी भेजा गया है, हम यूं कह सकते हैं कि इस बार प्रकृति ,एकता व आस्था के पर्व छठ पर्व पर विदेशों में भी सूपों के जरिए मनोज पंडित द्वारा बनाई गई मंजूषा कला की छटा बिखरेगी, सुप पर सूर्य स्वस्तिक ओम के अलावे मंजूषा के कई तरह के कलाकृतियों को बनाया गया है साथ ही बॉर्डर को तीन रंगों से सजाया गया है ,इन तीन रंगों में हरा गुलाबी और पीला है ,तीनों रंगों से सूप व डाला का आकर्षण काफी बढ़ गया है, सूप पर बने मंजूषा की पेंटिंग की कलाकारी लोगों का दिल जीत रही है।

मंजूषा को लेकर मनोज पंडित ने कहा……..

वहीं मंजूषा कला प्रशिक्षक मनोज पंडित ने बताया कि मंजूषा कला हमारे पूर्वज भी करते आए हैं और मेरे परिवार के लोगों में मेरी मां ,सभी भाई- बहन, पत्नी ,बच्चे भी इस कला में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं ,हमलोग छठ पर्व पर सुप, डाला, दीपक ,कलश पर मंजूषा विगत कई वर्षों से बनाते आ रहे हैं, खुशी की बात यह है कि अब बांस आर्ट को भी भारत सरकार ने शिल्प की कारीगरी में शामिल कर लिया है, अब कमजोर वर्ग के लोगों का भी व्यवसाय फल फूल सकेगा साथ ही मनोज पंडित ने यह भी बताया कि इस बार बड़ी संख्या में लोग मंजूषा पेंटिंग से सजे सुप की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

मंजूषा प्रशिक्षक मनोज को मिले हैं कई सम्मान

मंजूषा प्रशिक्षक मनोज पंडित को कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है, मंजूषा के लिए उन्हें जिला, राज्य व भारत सरकार के द्वारा कई वशिष्ठ सामानों से भी सम्मानित किया गया है, वह और उनका पूरा परिवार मंजूषा कला के लिए मानो अपना जान न्योछावर कर दिए हैं, पूरे भारतवर्ष में उनके हजारों शिष्य हैं जो मंजूषा लोक कला को बढ़ाने में लगे हुए हैं।

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