भागलपुर जिला को रेशमी शहर सिल्क नगरी से भी जाना जाता है लेकिन यहां के सिल्क व्यापार में मानो नजर लग गई हो,पहले कोरोना के चलते 2 साल बुनकरों और सिल्क से जुड़े व्यवस्थाईयों की कमर टूट गई और अब रूस यूक्रेन युद्ध हावी हो गया जिससे भागलपुर नाथनगर के चंपानगर क्षेत्र के 2000 घरों में सिल्क का व्यापार होता है जिसमें 10000 से अधिक पावर लूम मशीन चलते हैं जिसमें 50,000 बुनकर काम करते हैं, रूस यूक्रेन युद्ध के चलते भागलपुर में बनाई हुई साड़ी दुपट्टे और रेशमी कपड़े गोदाम में पड़े हुए हैं, यहां से किसी भी देश मे माल को सप्लाई करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ,
जिसके चलते तकरीबन 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की क्षति हुई है, वही भागलपुर के बुनकरों का कहना है अगर इस पर केंद्र व राज्य की सरकार थोड़ा भी ध्यान दें तो शायद हमलोगों का व्यवसाय फिर से सुदृढ़ हो जाए लेकिन हम लोगों के लिए जो भी पैसे आते हैं बिचौलियों के चलते पर्याप्त रूप से सवों को नहीं मिल पाता है जिसके चलते और भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, कई बड़े व्यापारियों से धागा सूद के पैसों पर उठाकर काम कर रहा हूं लेकिन माल ही नहीं दिखेगा तो हम लोगों को आमदनी कहां से होगी ,जहां 1 दिन की मजदूरी 800 से एक हजार रुपये मिलती थी वहीं अब 200 से 300 रुपये पर आ गई है ,खाने पर भी आफत हो गई है ,ना तो बच्चों को अच्छे विद्यालय में पढ़ा पा रहा हूं ना ही आगे कुछ सोच पा रहा हूं हम लोगों का जो भी माल तैयार है वह यू गोदाम में रखा हुआ है।
भागलपुर से होता है सिल्क का अंतरराष्ट्रीय व्यापार
गौरतलब हो कि भागलपुर से बने साड़ी स्कार्फ दुपट्टा का व्यवसाय अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर किया जाता है वही मोहम्मद अशफाक ने बताया हम लोगों का तैयार किया हुआ माल रूस यूक्रेन मलेशिया इंडोनेशिया अमेरिका सऊदी अरब बांग्लादेश के अलावे कई देशों में भेजा जाता है लेकिन इस रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते सिल्क व्यवसाय की रीड टूट चुकी है, लोग यहां से पलायन करने लगे हैं क्योंकि इस सिल्क व्यवसाय से हम लोगों को खाने पर भी आफत हैं। वही मोहम्मद अमन अंसारी मोहम्मद वारिस अंसारी मोहम्मद सौराव का कहना है हम लोग माल तैयार कर कर्ज में इतने दब गए हैं कि अब कुछ पाना मुश्किल लगता है अगर कर्ज ना होता तो हिम्मत कर इस व्यवसाय को आगे बड़ा था लेकिन अब लग रहा है हम लोगों को आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं।