मनीषा बेटी हूँ मैं।
😭😭😭😭😭
बेटी जन्मे से आई हूँ
लोक-लाज को पायी हूँ।
व्याथा किसे सुनाऊँ अपना
दर्दे समाजो से पायी हूँ।
नाजुक थी तब बडे प्यार से
मासूमियत जो बतायी थी।
गर्व था अपने जीवन पर
नारी सर्वोपरि सिखायी थी।
मनीषा हूँ मुझे देखो अब
दरिन्दों ने खूब नोंचा है।
हाँ!परिजन बिन बता जलाकर
आँसुऔं तक नहीं पोछा है।
शिद्दत से न्याय माँगने जब
न्यायपालिका को जाते हैं।
दरिन्दों का हि पक्ष मजबूत
वहाँ खुद कमजोर पाते हैं।
हाँ!अब तो ऐ हदें हुई जो
जनाजे पुलिस के कन्धों पर
पेट्रोल छिडक-छिडक जला दिये
श्मशान तक हुआ अन्धो पर।
उदासीन हो मेरी चिता पे
मुआवजे पाला मत खेलो
तनिक शर्म अगर बची है
पैरेवी उसका मत झेलो।
घन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
कदवा,नवगछिया, भागलपुर।