मारवाड़ी समाज सदैव अपनी रीति रिवाज संस्कृति पर्व त्योहार बोली भाषा पहचान पहनावा के माध्यम से पूरे विश्व में जाने पहचाने जाते हैं। साथ ही मारवाड़ी समाज आज विश्व में जिस जगह में भी है हर जगह अपनी संस्कृति का रीति रिवाज का पूजा पाठ का पर्व त्योहार का निर्वाहन उसी रूप में करता है। इसी संदर्भ में समाजसेवी चांद झुनझुनवाला ने बताया कि आगामी चैत मास के कृष्ण पक्ष की पहली तिथि 08/03/2023 बुधवार से मारवाड़ी समाज की महिलाओं के द्वारा एक विशेष तरह का त्यौहार गणगौर के रूप में मनाया जाता है। जिसमें नवविवाहित महिलाओं के साथ-साथ सुहागन महिलाओं एवं कुआंरी युवतियों द्वारा भी इसे मनाने की परंपरा है। जिसमें शिव परिवार से भगवान शिव माता पार्वती कार्तिकेय भगवान गणेश एवं उनकी पुत्री देवसेना को पंचदेव के रूप को गणगोर के रूप में पांच प्रतिमा की पूजा की जाती है। जिसकी शुरुआत हर वर्ष की चैत मास की कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से होती है प्रथम दिन से घर परिवार की महिलाओं द्वारा इसकी पूजा अर्चना शुरू की जाती है। प्रारंभ में होलिका दहन की राख से प्रतिमा बनाई जाती है।
और रोजाना उसे जल फूल दूध दूब से उस की पूजा की जाती है।
साथ में जंयती यानी गेंहु के दाने उगाए जाते हैं। रोजाना भींगे हुए गेंहु और मीठे का भोग लगाया जाता है।
प्रातः दोपहर संध्या के समय पुजन आरती किया जाता है। घर में एक साफ जगह पर एक चौकी पर रंगोली बनाकर बढ़िया स्थापित किया जाता है और विभिन्न प्रकार के गणगौर गीतों के साथ घर परिवार एवं समाज की महिलाएं एकजुट होकर एक ही रंग की लाल चुनरी में सोलह सिंगार कर सज धज कर रोजाना प्रथम दिन से अष्टमी तक इसकी पूजा करती है।
आगे शांता देवी झुनझुनवाला ने बताया कि 8 दिन बाद कुम्हार के यहां से कच्ची मिट्टी की बनी 5 प्रतिमाएं लाई जाती है एवं पहली प्रतिमाओं के स्थान पर स्थापित कर अगले 9 दिनों तक उसी प्रकार विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है।
प्रतिमा को रंगीन वस्त्र आदि से सजाया जाता है।
यह पुजन अपने परिवार में खुशी समृद्धि के साथ अपने सुहाग की रक्षा के लिए यह कामना की जाती है जो 17 दिनों तक चलती है। साथ ही कुंवारी महिलाएं अपने अमर सुहाग को पाने एवं अच्छा घर परिवार पाने के लिए पूजा करती हैं। इसमें मुख्य रूप से गीतों में पारम्परिक तौर पर "" गोर ए गणगौर माता खोल किवाड़ी बाहर था न पूजन वाली"" पुजो ऐ पुजा व माता क्या वर मांगा मांगा ए मांगा मैंने शिव सा वर मांगा"" आदि गीत गाए जाते हैं।। पूरे भारतवर्ष में यही रीति रिवाज के साथ यह पूजा अर्चना की जाती है। जिसमें महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं श्रृंगार करती हैं और रोजाना विभिन्न जगहों से लाए गए फूल जल से पूजा की जाती है। पहले के समय में रोजाना अलग-अलग कुआं से पानी लेने का नियम था परंतु अब कुआं के अभाव में विभिन्न घरों से पानी मंगाया जाता है। पुरा परिवार इसमें शामिल होता है।
और उनसे रोजाना उनका भोग प्रसाद बनाया भी जाता है और उन्हें जल का भी पिलाया जाता है।
इस पर्व का समापन इस वर्ष 24 मार्च को चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होगी।
जिसमें महिलाएं वर्त रख कर सामूहिक रूप से पूजा अर्चना करती हैं और अपने सुहाग की रक्षा परिवार की मंगल कामना हेतु शिव परिवार के रूप में पूजित गणगौर की प्रतिमाओं का पूजन करती हैं। और संध्या बेला में विधि विधान के साथ गीत संगीत के साथ पास की नदी तालाब पोखर आदि में उनका विसर्जन कर देती हैं और घर में विभिन्न प्रकार के पकवानों का सेवन कर अपना व्रत तोड़ती हैं।
पुरे 17 दिनों तक आयोजित यह पर्व आज पुरे विश्व में प्रमुखता के साथ समाज के अन्य वर्गों में भी मनाया जाने लगा है।
यह जानकारी प्रवक्ता चाँद झुनझुनवाला ने दी है।।