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नगरह के रामचन्द्र पढ़ाई में हमेशा से अव्वल रहे हैं इनके बारे में नगरह के ग्रामीण बताते हैं कि स्वामी जी की शिक्षा दीक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई है , पहले मध्य विद्यालय नगरह से आठवीं कक्षा तक इन्होंने पढ़ाई की फिर नंद कुमार उच्च विद्यालय में दाखिला लिया । मैट्रिक परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल करने के साथ रामचंद्र का नामांकन गजाधर महाविद्यालय नवगछिया में हुआ। जहां स्वामी जी ने हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक शास्त्र में श्रेष्ठ प्राप्त किया। सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षक बतलाते हैं कि स्वामी जी स्वयं की पढ़ाई के साथ अपने सहयोगी साथियों के शिक्षा का विशेष ध्यान रखते थे , एकांत में बैठकर घंटों पढ़ाई और पाठ्यक्रम से जुड़ी चर्चा किया करते थे।

नगरह के ग्रामीण कहते हैं कि मैट्रिक के बाद गांव की गलियों में घूमकर स्वामी जी शिक्षा की अलख जगाने में जुटे रहें , इस दौरान स्वामी आगमानंद जी महाराज ने उस वक्त घर के समीप ही स्व. सूर्य नारायण प्र. सिंह के दरवाजे पर कोचिंग खोल ली , जिसका नाम शांति निकेतन रखा गया, जहां आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को स्वामी जी पढ़ाया करतें थे, थोड़े दिनों बाद अन्य ग्रामीण शिक्षकों का योगदान मिला जिसका फायदा यह हुआ कि गांव के लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता होने लगी।उस वक्त ही इंटर के रिजल्ट में प्रथम स्थान रहा , नगरह गांव के बुजुर्ग कहते हैं पहली बार गांव में सम्मान समारोह तत्कालीन मुखिया रंगनाथ सिंह द्वारा रखा गया था जहां रामचंद्र को सम्मानित किया गया।

इस दौरान कई कहानी किस्से स्वामी जी से जुड़े हुए हैं, पढ़ाई के दौरान ही स्वामी जी माता कालिका के परम भक्त बन गए कोशी नदी के किनारे स्थित कालिका मैय्या दरबार में स्वामी जी घंटों पूजा पाठ करते थे , गांव के ललितेश्वर महादेव मंदिर,विषहरी मंदिर में संकीर्तन करते थे। स्वामी आगमानंद जी महाराज बचपन से ही शाकाहारी रहे हैं , सनातन संतों की सेवा में समर्पित रहने वाला युवक रामचंद्र को गांव के लोग प्यार से रामू कहकर पुकारा करते थे। स्वामी जी ने आगे स्नातक की पढ़ाई जेपी कॉलेज नारायणपुर और फिर पीएचडी के लिए तिलकामांझी में नामांकन लिया। पढ़ाई के दौरान उस वक्त स्वामी जी की मुलाकात डॉ बहादुर मिश्र (सेवानिवृत्त प्राध्यापक तिलकामांझी) से हुई। विभिन्न विषयों के विख्यात प्रोफेसरों के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त किया इधर छोटे दादा जी विंरची पांडे जी के तरफ आध्यात्म में झुकाव बढ़ता गया और स्वामी जी ने करीब 1990 ई में संत जीवन की राह अग्रसर हो गए।

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