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बिहार में राज काज के बीच एक राज का खुलासा नहीं हो पा रहा है। मिशन 2024 के सामने मिशन जर्दालु को झटका लगा है। दरअसल बिहार सरकार द्वारा पिछले 2007 से लगातार भागलपुर का जर्दालु आम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तमाम गणमान्य को भेजा जाता रहा। लेकिन इस बार सारी तैयारी के बावजूद आखिरी वक्त में ज़िला प्रशासन ने जर्दालु आम भेजने से मना कर दिया। मना क्यों किया यह अभी भी राज है। भागलपुर ज़िले में महेशी तिलकपुर गांव के आम उत्पादक किसान सह आम उत्पादक संघ भागलपुर के अध्यक्ष अशोक चौधरी बताते हैं कि जिला प्रशासन के आदेश पर अच्छी क्वालिटी का जर्दालु आम कई किसानों के बागान से ऊंची कीमत पर खरीदा गया। पैकिंग भी कर दी गई।

लेकिन भेजने के मुकर्रर तारीख़ की रात में नहीं भेजने का फरमान आ गया। नतीजा सैकड़ों क्विंटल आम बर्बाद हो गया।
अब इसे सियासी रंजिश का शिकार कहें या फिर मौसम की मार। या फिर चुनावी मौसम का जर्दालु आम पर प्रहार। भागलपुर का सैकड़ों क्विंटल जर्दालू आम, सारी तैयारी के बावजूद राज्य सरकार ने राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नहीं भेजा जा सका।
जबकि भागलपुरी जर्दालु आम अब जीआई टैग से लैश है। सैकड़ों क्विंटल जर्दालू आम सड़ गया। 299 से ज्यादा डब्बे के अंदर आम सड़ गया।

बाजार मुख्य से भी कम कीमत में बेचने की मजबूरी हुई। भागलपुरी जर्दालू आम 2007 से ही राज्य सरकार के द्वारा महामहिम राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री समेत कई गणमान्य को भेजा जाता रहा है। डेढ़ दशक पुरानी परंपरा को तोड़कर इस बार सरकार ने आम को महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को नहीं भेजने का निर्णय लिया। जबकि तैयारी पूरी हो चुकी थी। सिर्फ आम को ट्रेन पर लोड करना बचा था। आपको बता दें कि बिहार कृषि रोड मैप के तहत मिशन जर्दालु को बढ़ाबा देने का निर्णय तब हुआ था जब इस जर्दालु आम की खासियत और स्वाद लाजबाब था। उसी आधार पर जीआई टैग भी मिला। लेकिन अब जो हुआ उसमें किसान के उत्पाद की बेइज्जती है। जर्दालु आम की बेइज्जती है।

भागलपुर तिलकपुर के रहने वाले मैंगो मैन अशोक चौधरी ने बताया कि 50 रुपए किलो किसान से जर्दालु आम खरीदे। सौगात के तौर पर दिल्ली नहीं जाने से आधे दाम में जहां तहां बेचना पड़ा। आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष होने के नाते सारा वित्तीय बोझ मेरे पर आ गया है। कानपुर से जर्दालु आम का पैकेट बनकर आया। भागलपुर पहुंचने में देर हुई। 2 जून के बजाय 3 जून को दिल्ली दरबार में जर्दालु आम का सौगात जाना तय हुआ। लेकिन आधी रात को न जाने क्या बात हुई कि सरकारी फैसला आया कि अब जर्दालु आम की सौगात दिल्ली दरबार को नहीं जाएगी।

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