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कर्ण नगरी अंग प्रदेश भागलपुर में बिहुला विषहरी की गाथा महज आस्था और परंपरा का संगम नहीं बल्कि इसमें इतिहास की झलकियां भी है, सनातन धर्म में बाएं हाथ से पूजा को अशुभ माना जाता है. लेकिन भागलपुर के प्रसिद्ध पूजा में से एक मां मनसा की पूजा बाएं हाथ से ही होती है. इसके पीछे की कहानी काफी रोचक है. ऐसा कहा जाता है कि भागलपुर के चंपानगर के रहने वाले सिल्क के बड़े व्यापारी चांदो सौदागर बहुत बड़े शिव भक्त थे. वह भगवान शिव का पूजन किया करते थे. लेकिन शिव की पुत्री मां विषहरी ने अपनी भी पूजा करने को कहा. जिस पर चांदो सौदागर तैयार नहीं हुआ.

फिर विषहरी क्रोधित हो गई और उसके पूरे परिवार का विनाश करने लगी, चंदो सौदागर के 6 बेटे को त्रिबेनी गंगा घाट पर डूबा कर मार दिया. उसके बाद उसका एक बेटा बाला लखेंद्र बचा उसकी शादी बिहुला से हुई. अपने सातवें पुत्र को बचाने के लिए उन्होंने लोहे का शयन कक्ष बनवाया. लेकिन उसमें भी विषहरी प्रवेश कर गई थी. अंत में उसे भी डस लिया. लखेंद्र की मौत हो गई. फिर सती बिहुला पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्ग लोक तक चली गई और पति का प्राण वापस कर आयी। इसके बाद सौदागर भी विषहरी की पूजा को तैयार हुआ लेकिन शर्त रखी कि मैं पूजा बाएं हाथ से करूंगा, इसके बाद से आज तक विषहरी की पूजा बाएं हाथ से ही की जाती है।

क्यों कहा जाता है डलिया पर्व

आज से मां मनसा की पूजा प्रारंभ है और उनको डलिया चढ़ना प्रारंभ हो जाएगा. सबसे पहले सौदागर के वंशज का डलिया चढ़ता है. उसके बाद आम लोगों के लिए दरबार खुल जाता है और डलिया चढ़ने लगता है. डलिया में भी सिर्फ मौसमी फल ही होते हैं, इस पर्व को डलिया पर्व भी कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है की जब बिहुला अपने पति को जीवित कराने जा रही थी तभी उनके सास ने कहा था कि तुम क्या जीवित करा पाएगी तुम डर के और उसे गंगा में फेंक देगी और डोम से शादी कर लेगी. उसी दौरान जब अपने पति को जीवित कर वापस लौटी तो अपने सास का बात मानने के लिए पति पत्नी ने डलिया बीनना शुरू कर दिया. सोने के परात को छोड़ कर उसी डलिया में बिहुला के सास ने विषहरी को भोग लगाया था. तभी से डलिया में ही भोग लगाया जाने लगा. तभी से इसे डलिया पर्व के नाम से जाना जाने लगा.

मंजूषा पेंटिंग के जरिए विश्व भर में कहानी को किया जा रहा प्रदर्शित

अंग क्षेत्र की प्रसिद्ध कला मंजूषा कला के जरिए देश दुनिया में बिहुला विषहरी की परंपरा दस्तक दे रही है, सरकारी कार्यालय रेलवे पर मंजूषा पेंटिंग कराई गई है जिसके माध्यम से लोग बिहुला विषहरी की गाथा से अवगत हो रहे हैं।

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