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भागलपुर, बिहार के अंग प्रदेश में पौराणिक काल से चली आ रही बिहुला-विषहरी पूजा की परंपरा कायम है। जो लोग गाथा पर आधारित है जिसका चित्रण प्रतिमा के द्वारा उसके किरदार को दर्शाया जाता है। बिहुला-विषहरी में माता मनसा की पूजा की जाती है। भागलपुर जिले में लगभग 129 से भी अधिक जगहों पर मां मनसा देवी की पूजा अर्चना की जाती है। मां मनसा को भगवान शिव की मानस पुत्री और महादेव के गले में हार वासुकी की बहन कहा जाता है। अंग प्रदेश के चंपानगर की बिहुला विषहरी कहानी की पौराणिक मान्यताएं हर ओर फैली हुई हैं। इसके तथ्य विक्रमशिला के अवशेषों में भी मिलते हैं।

अंग प्रदेश में चंद्रधर सौदागर रहते थे जो चंपानगर के एक बड़े व्यवसायी थे। वे एक परम शिवभक्त भी थे। विषहरी जो भगवान शिव की पुत्री कही जाती हैं उसने चंद्रधर पर उसकी पूजा करने का दबाव बनाया लेकिन चंद्रधर राजी नहीं हुए। इसके बाद आक्रोशित विषहरी ने सौदागर के सात पुत्रों को खत्म कर दिया। सौदागर के छोटे बेटे जिनका नाम बाला लखेंद्र था जिसकी शादी बिहुला से हुई थी। उसके प्राण की रक्षा के लिए सौदागर ने लोहे-बांस से एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहें. विषहरी ने उसमें भी प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया. सती हुई बिहुला अपने पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक चली गई। इसके बाद वो पति का प्राण वापस लेकर लौटी। सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए लेकिन बाएं हाथ से। तब से आज तक विषहरी पूजा बाएं हाथ से ही होती है। सौदागर का बेटे के लिए बनाया हुआ घऱ आज भी चंपानगर में स्थित है।


बाला लखेंद्र के पिता व सती बिहुला के ससुर चंद्रधर सौदागार भगवान भोलेनाथ की बात सुनकर मनसा देवी को पूजा देने को राजी हुए. चंद्रधर ने पूजन के लिए कलश स्थापित किया. इस दौरान स्वर्ग लोक से जया विषहरी, दुतिला विषहरी, पद्मा कुमारी, आदिकसुमिन व मैना विषहरी वहां पहुंच गईं। कलश पर पांचों बहन विषहरी कलश पर विराजमान हो गई। जिस कारण प्रतीक के रूप में कलश पर पांचों बहन विषहरी की आकृति बनाई जाती है। चंद्रधर सौदागर द्वारा पूजन की परंपरा आज भी जारी है।
वही इस दौरान भागलपुर जिले के आसपास क्षेत्रों के अलावे विशेष रुप से चंपा नगर में मामन से आपकी पूजा अर्चना बल्ले ही धूमधाम से मनाई जाती है और हजारों की संख्या में हम मनसा देवी को दलिया चलाने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं। इस दौरान यहां पर भव्य रुप से दो दिनों तक मेले का भी आयोजन होता है।

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