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दूर दूर से पूजा व दर्शन के लिए आते है भक्त

नवगछिया प्रखंड स्थित खगड़ा वाली मैया की महिमा अपरंपार मानी जाती है कहा जाता है मैया के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है यही कारण है कि गांव के लोग वैदिक एवं तांत्रिक पद्धति से माँ की पूजा अर्चना करते हैं।
यहां के मंदिर का इतिहास करीब 312 वर्ष पुराना है। ग्रामीणों का कहना है कि बाबू धौताल सिंह के तीसरे वंशज बाबू प्रभु नारायण सिंह के सपने में माँ बम काली के स्थापना की जागृति हुई तब से लेकर आज तक उनके वंशज द्वारा माँ काली की तांत्रिक विधि विधान के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
यहां पर छाग बलि की परंपरा है जिसमें हर वर्ष 500 से अधिक छाग बलि प्रदान की जाती है भक्तों का यह भी मानना है कि माँ काली का अस्तित्व आदि शक्ति के रूप में प्रख्यात है।
वहीं बम काली पूजा समिति के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र कुमार सिंह एवं सचिव विनोद सिंह बताते हैं कि पूजा में माँ काली का 8 फीट की विशाल प्रतिमा बनायी जाती है तथा कार्तिक कृष्ण पक्ष आमावश्या के दिन माँ बम काली के तांत्रिक विधि द्वारा मंदिर में माँ की पूजा होती है जिसमें गांव के लोग तथा गांव के सभी कुटुंब बड़ी संख्या में शामिल होते हैं पूजा के समय जब माँ का नयन पूजन और निशा पूजन होता है तो एक अद्भुत अलौकिक शक्ति का एहसास होता है और उस समय सभी लोग अपनी आंखें बंद कर लेते हैं। पूजा में मुख्यतः दुलुप के पुष्प की प्रधानता होती है माँ दुलूप के पुष्प से अति प्रसन्न होती है। सभी माँ भक्त प्रत्येक वर्ष बहुत श्रद्धा से मैया की पूजा अर्चना करते हैं और जब भक्तों का मनोकामना पूर्ण होता है तो अपनी इच्छा अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं जिसमे विशेषत: छाग बली का स्थान है। बम काली पूजा समिति के कार्यकारिणी सदस्य धीरज सिंह ने बताया कि यहां बिहार के अलावा अन्य कई राज्यों से हजारों भक्त माँ के दरबार पहुंचते हैं और जो भक्त किसी कारणवश नहीं पहुंच पाते हैं, तो वे किसी न किसी माध्यम से भेंट भेजकर माँ का ऑनलाइन दर्शन करते हैं और यहां का खासियत यह है कि जो व्यक्ति एक बार काली पूजा में आ जाता है फिर उसे हर बार आने की इच्छा होती है।
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 12 नवंबर को अमावस्या तिथि के रात्रि में प्रतिमा की स्थापना की जाएगी तथा 13 नवंबर को पैरवा तिथि में महाआरती के पश्चात माँ को विदाई दी जाएगी एवं परम्परागत तरीके से समस्त ग्राम वासीयों के साथ बाहर से आये हुए भक्त अपने कंधो पर माँ को गंगा में विसर्जित करते हैं।

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