भागलपुर : बात जब बिहार के भागलपुर की होती है तो सबसे पहले लोगों के जेहन मे भागलपुरी सिल्क, यहाँ का कतरनी चूड़ा, जर्दालु आम, विक्रमशिला विश्विद्यालय समेत कई बातें आती है लेकिन बीते कुछ वर्षों से गरुड़ ( ग्रेटर एडजुटेंट) ने भागलपुर का नाम विश्व के भौगोलिक मानचित्र पर अमिट छाप छोड़ी है विश्वभर में स्टोर्क समूह के पक्षीयों में सबसे संकटग्रस्त पक्षी गरुड़ माना जाता है लेकिन कम्बोडिया व भारत मे दो राज्यों में इसकी संख्या बढ़ रही है। असम और बिहार में गरुड़ों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। बिहार के भागलपुर का कोसी कदवा के इलाके में गरुड़ काफी संख्या में पाए जाते हैं साल दर साल गरुड़ के संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। यह विशालकाय पक्षियों में से एक है वयस्क होने तक इसका वजन 12 किलोग्राम तक होता है। 2006-2007 में लोगों ने जब इस पक्षी के बारे में जाना तब यहाँ इसकी संख्या 78 थी अब 600 से 700 के बीच है। विश्वभर में 1200- 1800 आंकी गयी है इनमे से 600 से अधिक गरुड़ सिर्फ भागलपुर में है। इसका कारण है कि नवगछिया के कदवा इलाके में गरुड़ खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं यहाँ उनके लिए वातावरण अनुकल है बड़े बड़े पेड़ों के कारण वहां वह सुरक्षित तरीके से अपना घोषला बनाते है इसके साथ ही यहां के लोग गरुड़ को भगवान की तरह मानते हैं उसे कोई मारता नहीं है जिस कारण से गरुड़ को प्रजनन में भी समस्या नहीं होती है। गरुड़ों के प्रजनन में सहायक पीपल, कदम्ब, बरगद का वॄक्ष लगाया जाता है। इसके साथ ही भागलपुर के सुंदरवन में भारत का पहला गरुड़ पुनर्वास केंद्र है। कहीं गरुड़ बीमार पड़ जाता है या वह पेड़ से गिरकर घायल होता है तो वन विभाग उसे गरुड़ पुनर्वास केंद्र लाकर उसका ईलाज करता है जब वह स्वस्थ होता है तो फिर उसे उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया जाता है। गरुड़ों के संरक्षण के लिए किए जा रहे तरह तरह के इन कार्यों से वह खुद को महफूज मानते है यही वजह है कि संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। स्थानीय लोग गरुड़ को लेकर काफी जागरूक है लोगों ने बताया कि गरुड़ के साथ यहां कोई छेड़छाड़ नहीं करता है गरुड़ की सुरक्षा के लिए यहां लोगों को गरुड़ सेवियर और गरुड़ गार्जियन बनाया गया है।
स्थानीय लोग, स्वयंसेवी संस्था, पक्षीप्रेमियो , वन विभाग व राज्य सरकार के सम्मिलित प्रयास से गरुड़ यहां सुरक्षित है और उनकी संख्या बढ़ रही है इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कोऑर्डिनेटर पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा ने 2006- 2007 में गरूड़ के बारे में जाना तब यहाँ गरुड़ की संख्या 78 थी। उन्होंने लोगो को जागरूक किया पक्षी के बारे में बताया जिसके बाद लोग गरुड़ की सेवा करने लगे। अरविंद मिश्रा द्वारा गरुड़ों पर लिखी लेख भी लंदन में छपी रिलीजन एंड नेचर कंजर्वेशन में छपी है। अरविंद मिश्रा ने बताया कि 2006 में हमने देखा कि बिहार में भी गरुड़ प्रजनन करते है भागलपुर के कदवा इलाके में कदम्ब , पीपल और बरगद के पेड़ों पर अपना घोषला बनाते थे लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी हमने लोगों को यह बताया कि यह गरुड़ विलुप्त होती पक्षियों में से एक है जिसे बचाने की जरूरत है आप इसकी सुरक्षा करें जिसके बाद लोग उसकी सुरक्षा करने लगे जिसके कारण गरुड़ों की संख्या बढ़ती जा रही है। पर्यवारण विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव विवेक सिंह से मिलकर पुनर्वास केंद्र खुलवाने की मांग की थी जिसके बाद भागलपुर सुंदरवन में गरुड़ पुनर्वास केंद्र बनाया गया। जो भारत का पहला गरुड़ पुनर्वास केंद्र है बहरहाल 16 वर्षों में भागलपुर में गरुड़ों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि से यह कह सकते हैं कि जल्द ही भागलपुर गरुड़ों की संख्या में पहले स्थान तो असम देश मे दूसरे स्थान पर होगा। भागलपुर अब गरुड़ के लिए भी जाना जाने लगा है।