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नवगछिया : धर्मसंघ पीठपरिषद् के तत्त्वावधान में शक्तिपीठ तेतरी दुर्गा स्थान पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के चौथे दिन प्रवचन करते हुए प्रख्यात भागवत वक्ता आचार्य (डॉ.) भारतभूषण जी महराज ने कहा कि दूसरे के दुःख को दूर करने तथा समष्टि हित में निरत रहनेवाले महानुभाव भगवान के प्रिय होते हैं। उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्रों को मार डाला था किन्तु द्रौपदी ने उनके प्राणों की रक्षा की। ध्रुव जी की विमाता ने उन्हें वनवास दे दिया था किन्तु ध्रुव जी ने भगवान की प्राप्ति की और विमाता तथा उसके पुत्र उत्तम के प्रति हमेशा आत्मीय भाव रखा। आचार्य ने कहा कि प्रह्लाद जी ने हिरण्यकशिपु के प्रति पूरा आदर तथा शिष्टाचार का पालन किया किन्तु सिद्धांत पर अडिग रहे। यही भक्त का लक्षण है।वह सबके हित की चिंता करता है किंतु समर्पित केवल भगवान के श्रीचरणों में ही रहता है।आचार्य ने कहा कि बड़े – बड़े चक्रवर्ती सम्राट भी भगवान के श्रीचरणों के आश्रित रहे और प्रजा सहित भगवच्चरणारविन्द मकरंदों का आस्वादन करते रहे। जीवन का परम फल यही है।भगवत्-भागवत कैंकर्य परायणता ही जीवन का परम सुख है। उन्होंने कहा कि जब-जब वैदिक सनातन धर्म पर अधम अराजक आसुरी तत्त्वों का आक्रमण होने लगता है और दुर्जनों के द्वारा सज्जनों को सताया जाने लगता है तब – तब भगवान विविध रूपों में अवतार लेते हैं और दुष्कृतियों का विनाश और सज्जनों का पोषण करते हैं। भगवान ही धर्म की रक्षा करते हैं अतः पूर्ण मनोयोग से दृढ़ता पूर्वक धर्म की रक्षा करनी चाहिए।आज की कथा में प्रह्लाद चरित्र, गजेन्द्र मोक्ष,श्रीरामावतार और श्रीकृष्ण के प्राकट्य का वर्णन हुआ। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन में मंदरांचल पर्वत की मथानी बनाई गई थी जिसे भगवान ने कच्छप बनकर अपनी पीठ पर धारण किया था। यह मंदार भागलपुर क्षेत्र में है।आचार्य ने कहा कि कर्मनाशा और शोणभद्र के बीच गंगा जी के दक्षिण तट को करूष और मलद प्रदेश कहा गया है। इन्हीं दोनों जनपदों को आजकल आरा और बक्सर के नाम से जाना जाता है।वृत्रासुर के उद्धार के बाद देवराज इन्द्र को ब्रह्महत्या ने पकड़ लिया था तब बृहस्पति जी ने इसी क्षेत्र में यज्ञ कर तथा गंगाजल से देवराज इन्द्र की शुद्धि कराई थी। जहां ब्रह्महत्या के दोष मैल आदि गिरे वह मलद तथा जहां ब्रह्महत्याजनित भूख – प्यास समाप्त हुई वह करूष जनपद कहलाया। देवराज इन्द्र ने इस क्षेत्र को धन -धान्य और धर्म से परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद दिया। बक्सर सिद्धाश्रम-वामनाश्रम आदि नामों से भी पुराणों में प्रसिद्ध रहा है। भगवान वामन ने प्रथम कल्प में नर्मदा के तट पर गुजरात में तथा तृतीय कल्प में गंगा के तट पर वामनाश्रम में अवतार लिया। दैत्यराज बलि की यज्ञस्थली जिसे बलियागस्थल कहा जाता था वही आजकल बलिया है। भगवान वामन ने जहां बलि का आहरण किया उसे बलिहार कहा जाता है। कथा में आयोजन समिति के अध्यक्ष रमाकांत राय, अरुण राय, टुनटुन मास्टर, सुनील राय, महंत जयप्रकाश झा सहित तमाम गणमान्य लोगों ने व्यासपीठ का पूजन किया। इस अवसर पर कथा श्रवण करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।

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