नवगछिया : प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय , स्थानीय शाखा नवगछिया के सभागार में अलौकिक होली स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया। स्थानीय शाखा के संचालिका बी के निर्मला बहन ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर विचार प्रगट किया की यह कार्यक्रम होली के आध्यात्मिक रहस्य को जानकारी देने के लिए किया गया है। रहस्य को जानकार मानव अपने जीवन में उसे प्रयोग करें । यह कार्यक्रम मानव कल्याण हित है।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता राजयोगिनी अनीता दीदी ने अपने उद्बोधन में विचार व्यक्त किया की होली के त्यौहार के मूल स्वरूप का जानकारी प्राप्त होने के बाद रोम रोम मन में रोमांचित होता है । वास्तव में जितने भी त्यौहार हैं वह सब भगवान के धरती पर अवतरित होने और मानव कल्याण के लिए किए जाने वाले उनके भिन्न-भिन्न कर्तव्यों की यादगार रहे हैं । होली भी भगवान द्वारा आत्माओं को अपने संग के रंग में और ज्ञान के रंग में रंगने के कर्तव्य का यादगार है। ज्ञान को सच्ची पूंजी और विनाशी खजाना, परम औषधि, अमृत , प्रकाश और प्रभु की मस्ती में रंग देने वाला रंग भी कहा गया है ।
प्रभु के संग से आत्मा में जो अलौकिक निखार आता है उसे ज्ञान का रंग चढ़ना कहा जाता है । कबीर जी ने भी कहा है ,
लाली मेरे लाल की , जित देखूं तित लाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ।
अर्थात प्रभु के संग का रंग ऐसा लगा जो आत्मा उनके सामान बन गई। कालांतर में परमात्मा संग का रंग में से परमात्मा संग शब्द तो निकल गया होली मात्र रंगों का त्योहार रह गया ।
होली मनाने का त्यौहार वर्ष के अंतिम मास फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है । सृष्टि चक्र के दो भाग हैं – ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात्रि ।
ब्रह्मा का दिन है सतयुग और त्रेता युग । उस समय सभी देवताएं ईश्वरी रंग में रंगी होती है परंतु जब द्वापर आता है और ब्रह्मा की रात्रि का प्रारंभ होता है तो मानव आत्माएं विकारों से बदरंग होने लगती है। कलयुग के अंत तक तो इतनी बदरंग हो जाती है कि अपनी असली पहचान से पूरी तरह दूर चली जाती है, तब निराकार परमात्मा शिव धरती पर अवतरित होकर विकारों से बद रंग बनी आत्माओं को अपने संग का रंग लगाते हैं । उन्हें उजाला बनाएं उनमें ज्ञान, शांति, प्रेम, सुख , आनंद, पवित्रता , शक्ति आदि गुण भरकर देव तुल्य बना देते हैं। चूंकि यह घटना कल्प के अंत में घटती है इसलिए यादगार रूप में यह त्योहार भी वर्ष के अंतिम मास के अंतिम दिन मनाया जाता है । शिव भगवान जब आते हैं तो स्वयं तो ज्ञान गुणों का रंग आत्माओं पर लगाते ही है परंतु जिन पर ज्ञान का गुणों रंग लग जाता है उन्हें या आदेश भी देते हैं कि अब तुम अन्य आत्माओं पर भी यह रंग लगाओ । इसी की याद में इस त्योहार पर मनुष्य एक दो को गुलाल आदी लगाते हैं ।