नवगछिया के कोसी कदवा दियारा के मछुआरों को शामिल किया गया गरूड़ जागरूकता अभियान में. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, वन प्रमंडल, भागलपुर और मंदार नेचर क्लब की ओर से शहर के सुंदरवन में “गरूड़ जागरूकता अभियान” के दूसरे दिन कदवा दियारा की कोसी किनारे पकरा बासा और ठाकुरजी कचहरी टोला में बसे मछुआरों को आमंत्रित किया गया. उनके साथ गंगा किनारे बसे डॉल्फिन मित्र मछुआरों को भी शामिल किया गया जो दिन प्रतिदिन गरुडों के इर्द गिर्द ही घूमते रहते हैं.
पिछले कुछ समय में कदवा दियारा में कभी-कभी घोंसलों पर ही गरुडों के बच्चों को मृत देखा गया है. इस बात को लगभग दो दशकों से गरुडों के अध्ययन और संरक्षण में जुटे अरविंद मिश्रा, वन प्रमंडल पदाधिकारी सुश्री श्वेता कुमारी, विभाग के वन्य जीव चिकित्सक डॉo संजीत कुमार ने गंभीरता से लिया है . ऐसे मृत गरुड़ का पोस्टमार्टम कर उनके अवयवों को जांच के लिए भी भेजा गया है . गरुडों के मुख्य भोजन मछली की कम उपलब्धता, कुछ बीमारी का प्रकोप या किसी प्रकार से मछली या चूहों के माध्यम से उनके शरीर में जहर के पहुंचने की संभावनाओं को भी उनकी मृत्यु के कारण से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि अरविंद मिश्रा ने बताया कि पहले भी यदा कदा इस इलाके में घोंसले पर मृत पक्षी पाए जाते रहे हैं जो एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया हो सकती है.
ऐसा इनके अन्य प्रजनन स्थलों आसाम और कंबोडिया में भी होता होगा. इस पर शोध किया जा रहा है. कार्यक्रम में मछुआरों ने बताया कि चूहों से निजात पाने के लिए कुछ लोग अनाज के दानों में जहर मिलाकर छींट देते हैं और कुछ लोग मछली में जहर डालकर बगुले जैसे पक्षियों का शिकार भी करते हैं . ऐसे विषयुक्त चूहे या मछलियों को जब ये गरुड़ चारा बनाकर अपने बच्चों के लिए घोंसलों में ले जाते हैं तो उसे खाने के बाद भी गरुड़ के बच्चों की मौत हो सकती है.
अरविंद मिश्रा ने अपनी वार्ता में बताया कि मछुआरे यदि छोटी मछलियों को मार लेंगे तो उन्हें बड़ी मछलियां मिल ही नहीं पाएंगी . इससे मछुआरों की आमदनी पर तो फर्क पड़ेगा ही गरुड़ जैसे दुर्लभ पक्षियों के लिए भी भोजन की कमी हो जायगी . यदि ऐसी जहर दी हुई मछलियों को इंसान भी खायगा तो उसके शरीर में भी विष का प्रकोप होगा . उन्होंने बताया कि जहर की बजाय चूहों के बिल के पास उन्हें पकड़ने के लिए चूहेदानी का प्रयोग किया जाय तो गरुडों के लिए जहर का खतरा भी कम होगा और उन्हें चूहों के रूप में भोजन भी मिल जायगा . वैसे भी जब गरुडों की संख्या बढ़ेगी तो चूहे और सांप जैसे जीवों की संख्या अपने आप नियंत्रित हो जायगी .
विश्व भर में अति संकटग्रस्त गरुड़ की इस प्रजाति के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदाय को एकजुट किया जा रहा है . युवाओं को संगठित कर “गरुड़ सेविअर”, अनुभवी बुजुर्गों के लिए “गरुड़ गार्जियन” और महिलाओं की भागीदारी के लिए “गरुड़ सेविका” जैसे समूह पहले से ही सक्रिय हैं . अब मछुआरों के समुदाय को भी इस अभियान में जोड़ा जा रहा है जो अच्छा-खासा समय इन गरुडों के साथ बिताते हैं जब वे जलाशयों में अपना चारा करने जाते हैं .
डॉo संजीत कुमार ने बताया कि इन मछुआरों ने पहली बार देखा कि कैसे भागलपुर के सुंदरवन में दुनियां का एक मात्र “गरुड़ सेवा एवं पुनर्वास केंद्र” स्थापित हुआ है और वहीँ हमारी नदियों के सफाईकर्मी कछुओं के लिए भी पुनर्वास केंद्र की भी स्थापना की गई है I यहाँ इन जीवों का इलाज कर उनके स्वास्थ हो जाने पर उन्हें उनके प्राकृतिक वास में छोड़ दिया जाता है I
इस अवसर पर देश भर में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के नामचीन वैज्ञानिक डॉo पी० सथियासेलवम और उनके शोधार्थी अभय राय ने भी अपने विचार रखे I पक्षी पालक मो० अख्तर, वनरक्षी अनुराधा सिंहा, वनरक्षी प्रियंका कुमारी, गरुड़ सेवियर्स राजीव कुमार, श्री मृत्युंजय सिंह और मत्स्य समिति के श्री पुलिस सिंह इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से शामिल थे और उनके साथ विभाग के आदित्य, मिट्ठू, जग्गू, बबलू आदि भी उपस्थित थे। इन सारे जागरूकता अभियानों को आयोजित करने में भागलपुर के वन क्षेत्र पदाधिकारी श्री राजेश कुमार का सम्पूर्ण सहयोग रहा I