सहरसा: कोसी क्षेत्र से मजदूरों का पलायन जारी है। लॉकडाउन में जहां लोग घर आने के लिए मारे-मारे फिरते थे, अब वहीं अपना घर-बार छोड़कर परिवार चलाने के लिए दिल्ली सहित अन्य प्रदेशों का रुख कर रहे हैं। सहरसा से प्रतिदिन सैकड़ों मजदूर दिल्ली, पंजाब समेत दूसरे राज्यों में जा रहे हैं।
इन मजदूरों को गांव में काम नहीं मिला। लॉकडाउन में घर आने के बाद फिर मजदूरों का एक बड़ा वर्ग बाहर पलायन करने को मजबूर है। पलायन की रफ्तार इतनी तेज है कि मजदूरों को सामान्य दर्जे में भी टिकट नहीं मिल रहा है। ऐसे में मजदूर एसी थ्री व एसी टू में सीटें बुक कराकर बाहर जा रहे हैं। बुधवार को सहरसा टिकट काउंटर पर सुलिंदाबाद के अनोज पंडित व पंकज सादा मिलते हैं। पूछने पर सीधे कहते हैं कि वे दिल्ली जा रहे हैं और एसी टू का टिकट तत्काल में कटाना पड़ रहा है। दो दिन पहले भी आए थे। कंफर्म टिकट नही मिलने पर तत्काल से टिकट कटाना पड़ेगा। राजमिस्त्री अनोज कहते हैं कि दिल्ली में काम करने के दौरान मालिक रहने के लिए घर देता है। इसीलिए सिर्फ खाने में पैसे खर्च होते हैं। इससे पहले भी दो महीने काम कर घर आए तो 20 हजार रुपये बचाकर घर लाए। इस बार भी दो महीने के लिए जा रहे हैं। अब दशहरा में ही घर आएंगे। दिल्ली में रोज काम मिल जाता है। यही हाल कमोबेश सब मजदूरों का है। वे कहते हैं कि घर बैठकर क्या करेंगे। बाहर जाते हैं तो मजदूरी मिलती है और इससे परिवार चलता है। मजदूरों को सामान्य टिकट कटाने में करीब 600 रुपये खर्च होते हैं। एसी बोगी में उन्हें 2100 रुपये किराया लग जाता है। एसी थ्री व एसी टू में अधिकांश मजदूर ही यात्रा करते मिलते हैं।
हर माह पांच से छह हजार मजदूर जाते हैं बाहर
सहरसा जिले से हर माह रेल मार्ग से पांच से छह हजार मजदूर बाहर जाते हैं। पूरे कोसी क्षेत्र को मिला दें तो इनकी संख्या 10 हजार से अधिक हो जाती है। सहरसा से नई दिल्ली के बीच चल रही स्पेशल ट्रेन वैशाली एक्सप्रेस से ही प्रतिदिन 200-250 मजदूर दिल्ली सहित अन्य जगहों का टिकट कटाते हैं।
दलालों के शिकार भी हो रहे मजदूर
मजदूर कंफर्म टिकट के लिए दलालों के चंगुल में भी फंसते हैं। हाल ही में सौर बाजार के आठ मजदूरों को सहरसा आरपीएफ ने पकड़ा। इनके पास ई-टिकट थे। टीटीई के पास मौजूद दस्तावेजों में इनके नाम के आगे महिला लिखा गया था। पूछने पर मजदूरों ने आरपीएफ को बताया कि उन्होंने दिल्ली से ऑनलाइन टिकट बुक कराया था। इस मामले में टिकट बुङ्क्षकग कराने वाले दलाल ने मजदूरों का नाम तो सही लिखा, लेकिन पुरुष की जगह महिला लिख दिया। इस कारण टिकट कंफर्म कराना आसान हो गया। दलाल का काम हो गया और मजदूरों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।