

@ अंगिका भाषा के बारे में तथा अपने साहित्यिक अनुभव से उन्हें अवगत भी कराया। यह मुलाकात तकरीबन 45 मिनट तक चली। कुमारी रूपा बिहार के बांका जिले के अमरपुर थाना क्षेत्र की गोरई जानकीपुर गांव की रहने वाली हैं। हालांकि अब बच्चों के साथ नोएडा में रहती हैं।

प्रदीप विद्रोही
भागलपुर। ‘ अंगिका रामचरित मानस ‘ पुस्तक से लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची अंग की मिट्टी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार कुमारी रूपा नई दिल्ली स्थित बिहार निवास में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से मिली। उन्हें ‘अंगिका रामचरित मानस, नारायणम व एक मुट्ठी शब्द’ की एक – एक प्रति भेंट की व अंगिका भाषा के बारे में तथा अपने साहित्यिक अनुभव से उन्हें अवगत कराया।

यह मुलाकात तकरीबन 45 मिनट तक चली। कुमारी रूपा बिहार के बांका जिले के अमरपुर थाना क्षेत्र की गोरई जानकीपुर गांव की रहने वाली हैं। हालांकि अब बच्चों के साथ नोएडा में रहती हैं। रूपा जी कहती हैं हम अपने अंग क्षेत्र से भले ही दूर हुए हो लेकिन अब भी दिल में अंगिका जिंदा है। अंगिका बिहार की सबसे पुरानी भाषा है। इसी से बिहार की अन्य भाषाओं का जन्म हुआ है। रामचरित मानस’ को आधार स्वरूप मानकर अनुवाद और व्याख्या के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।

यह “अंगिका रामचरित मानस” भारतीय संस्कृति, आचार-विचार, सभ्यता का एक सुंदर धरोहर है । गोस्वामी तुलसीदास कृत “रामचरित मानस” का यह अनुवाद है। भक्ति ज्ञान और कर्म का समन्वय है । साथ ही इसमें रचयिता कुमारी रुपा ने अपने ब्यक्तिगत विचार भी प्रस्तुत किये हैं – ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी जैसे कुछ विवादित विषय का बिल्कुल सही सटीक अर्थ भी प्रस्तुत किया है। यह मानस जन – मानस को धर्म और सांसारिक – कर्म से जोड़ने की अद्भुत कड़ी है। यह सहज जीवन से लेकर कठिन त्याग का अपूर्व संगम है। इसके अंतर्गत तुलसीदासजी के विचारों को अंगिका भाषा में प्रस्तुत करते हुए, उनके सारे आयामों को यथावत रखते हुए ,पाठ की लयबद्धता, पाठ के दौरान के विश्राम, सबको यथावत रखा गया है। रचयिता का अंगिका साहित्य में यह विशाल ग्रंथ तुलसीदास के मानस के आधार पर हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास है। जो निश्चय ही अंगिका साहित्य को भी समृद्ध बनाने में पुर्ण सक्षम होगा ।

यह हर घर, जन – जन के लिए वंदनीय है,पूजनीय है, ग्राह्य है।
लेखिका कुमारी रूपा के अनुसार रामायण भक्ति प्रेम आदर त्याग और उदारता का ग्रंथ है। उनकी मां ने बचपन में ही इस रामायण का बीज उनके अंदर बोया था; जो उर्वर हुआ गोरई की पवित्र धरती पर। उनके श्वसुरजी जमीन बेच कर रामायण पाठ कराते थे। उनके पति जीवन भर, मंगलवार को पांच लड्डू भोग लगाकर सुंदर कांड का पाठ करने के बाद ही मुंह में अन्न रखते थे। वही सब आज मेरे ‘अंगिका रामायण’ के रूप में फलित हुआ है। अंगिका बिहार के भागलपुर, बांका, मुंगेर और आस-पास के जिलों की भाषा है। साथ ही झारखंड के कुछ भागों में भी अंगिका बोली जाती है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका की पढ़ाई स्नातकोत्तर स्नातकोत्तर स्तर पर होती है। अंगिका रामचरितमानस की लेखिका कुमारी रूपा के अनुसार इसके लेखन की शुरुआत एक मजाक से हुई थी। लेकिन भगवान श्रीराम की कृपा से आज यह महाकाव्य अपने पूर्ण रूप में आ चुका है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले अंगिका भाषी समाज के बीच उन्होंने अंगिका में एक संदेश लिखा था।जिसकी लोगों ने खूब सराहना की थी। इसी दौरान मजाक-मजाक में यह बात हुई कि एक संदेश तो क्या मैं अंगिका में रामायण लिख सकती हूं।

फिर कुछ दिनों बाद लोगों की प्रेरणा से उन्होंने अंगिका रामचरितमानस का बीड़ा उठाया और आज यह महाकाव्य पूर्ण रूप में अंगिका भाषियों के लिए उपलब्ध है।