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कोसी मित्र सहरसा स्थानीय कला ग्राम में कोसी नदी तथा बाढ़ की समस्या विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा आयोजित की गयी । परिचर्चा में डॉ.महेंद्र कुमार, मिथिला विश्वविद्यालय के पी -एच. डी. शोधार्थी हरीशंकर गुप्ता तथा नितीश प्रियदर्शी ने कोसी नदी और बाढ़ की समस्या पर अपने विचार रखे। मुख्य वक्ता के रूप में नदी विशेषज्ञ तथा फ़िजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनायिक प्रो. ओम प्रकाश भारती ने अपने व्याख्यान में कहा- किनारों की मर्यादाओं को तोड़ना नदियों का शास्त्रसम्मत आचरण है । भारतीय ज्ञान परंपरा में बाढ़ वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक रही है । ज्ञान और धन की बाढ़ सामाजिक अपेक्षाएँ रहीं हैं । तो नदियों की बाढ़ की उपेक्षा क्यों। नदियाँ उपेक्षित हुई । नदी आधारित पशुपालन और कृषि व्यवस्था से लोग दूर होते गए। नदियों को बांधा गया । रोड तथा रेल लाइन बनाने के क्रम में नदियों का मार्ग अवरुद्ध हुआ। जिस बाढ़ के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती थी और अच्छी फसलें होती थी, अब वह विनाशकारी है। कोसी भी इन्हीं नदियों में एक है। उत्तर बिहार की जीवनदायिनी नदियाँ और अच्छी वर्षा लोगों के लिए वरदान था। वेद तथा पुराणों में यहां की नदियों को जीवन दायिनी तथा मातृत्व भाव से आराधना की गयी है । उत्तर बिहार में बाढ़ के विनाशकारी होने की कहानी औपनिवेशिक काल से शुरू होती है। अंग्रेजों की कुल्हारियों ने नील की खेती के लिए नदी बेसिन के जंगलों नष्ट कर दिया। देश की स्वतंत्रता के बाद के सरकारों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारणों से कोसी तटबंधों का निर्माण उस समय किया गया, जिस समय पूरी दुनियाँ बांध का विरोध कर रही थी और पश्चमी देशों में बांध तोड़े जा रहे थे। कोसी तटबंध का निर्माण किया गया। यह तटबंध अब तक आठ बार टूट चुके हैं। इस टूट में अब तक लगभग पचास हज़ार लोग काल कवलित हुए। बाँधों के पुनर्निर्माण का व्यय और अन्य आर्थिक क्षति का आकलन भी कम चौकाने वाला नहीं है।उत्तर बिहार की प्रमुख नदियों यथा कोसी, कमला, बलान, वागमती, गंडक, तिलयुगा, पनार तथा महानंदा का उदगम क्षेत्र हिमालय का ऊपरी भाग है। तिब्बत के पठार तथा हिमालय के लगभग साठ प्रतिशत वर्षा तथा हिमजल को ये नदियाँ उत्तर बिहार के समतल मैदानी क्षेत्रों पर उलेड़ती है, और अंतत: ये सारा पानी गंगा में जा मिलता है। इन नदियों का प्रवाह उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर है। ये नदियाँ औसतन चौबीस हज़ार फीट की ऊँचाई से समतल पर आती हैं।

पृथ्वी की ढाल तथा चुम्बकीय प्रवाह के कारण इन नदियों का वेग भारत के अन्य क्षेत्रों नदियों की अपेक्षा तीव्र है। उत्तर बिहार की रेल लाइन, हाइवे तथा अन्य पक्की सड़कें नदियों को क्रास करते हुयी पूर्व – पश्चिम बनी हैं। पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों को जोड़ने वाली अधिकांश पक्की सड़कें और नॉर्थ ईस्ट कॉरिडोर इन्हीं नदियों के ऊपर से गुजरती है। इन सड़कों के निर्माण में नदियों को पर्याप्त रास्ता नहीं दिया गया। कोसी तटबंध के निर्माण के बाद कोसी की सोलह छाड़न धाराएं( बैती, पूरैन, खरीदाहा, तिलावे, परमाने, लच्छा, हाहा, पनार, कजली आदि) बरसाती नदी बनकर रह गयी। बाद के दिनों में रोड बनने के क्रम में अधिकांश छाड़न धाराओं के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया। -अतिवृष्टि होने स्थिति में पानी गाँव की ओर रुख करता है। आज उत्तर बिहार के अधिकांश भू भाग पर लगे धान की फसलें वर्षा –जल में डूबा है। उत्तर बिहार में चर चांचर की बड़ी संख्या थी। यह झीलनुमा वह क्षेत्र था जहाँ गाँव और खेतों का पानी एकत्र रहता था। अधिक वर्षा होने पर पानी चर में एकत्र होता था। चर में मखान की खेती और मछली पालन होती थी। रोड बनने के क्रम में कई चरों को भोथ दिया गया। किसानों नें भी चरों को भोथ कर खेती योग्य बना लिया। पूर्णियाँ, अररिया, राघोपुर, सहरसा , खगड़िया, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा तथा मधुबनी शहर से लगा हुआ कभी विशाल चर हुआ करता था। शहर बसने के क्रम के इन चरों का आतिक्रमण हो चुका है। आज बारिश के पानी से ही इन शहरों में बाढ़ है। पूर्णियाँ में कारी कोसी, अररिया में पनार, मुरलीगंज में लच्छा ,मधेपुरा में परवाने तथा सुपौल में पुरइन नदी के जल अधिग्रहण क्षेत्र तथा प्रवाह मार्ग का अतिक्रमण कर शहर बस गया। यहाँ नदियों में शहर बसे हैं, शहर में नदी तो कभी –कभी आती है। समाज नदी के रास्ते में खड़े और अड़े हैं। नदियों को चाहिए कि वो इस अंचल को छोड़ कर कहीं दूर चले जाएं !
कोसी नदी और यहाँ के समाज का वर्षों का साहचर्य रहा है। आज नदी आधारित पारंपरिक ज्ञान की उपेक्षा कर समाज नदियों से भिड़ रहा है और दायित्व से कतरा रहा है। नदी आधारित विकास के मॉडल को हमें प्रोत्साहित करना होगा।
हिमालय और वहाँ से निकालने वाली नदियों को लेकर चीन की महत्वाकांक्षी नीति भयभीत करने वाली है। अरुण कोसी सहित हिमालय की अधिकांश नदियों पर चीन ने उच्च बांध बना लिया है। चीन की ड्रेगन नीति कोसी जैसी नदियों को निगल रही है। अरुण कोसी कोसी की मुख्य धारा है। बांध बन जाने से सदा के लिए कोसी का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर चीन कई बार बातचीत करने से मुकर चुका है। भारत के खिलाफ इन बाँधों का राजनीतिक दुरपोयोग चीन कभी भी कर सकता है। चुप बैठने से नहीं होगा। हमें इन मुद्दों को जीवित रखना होगा।संयोजक अखिलेश कुमार के धन्यवाद ज्ञापन से परिचर्चा संगोष्ठी की समाप्ति हुई। इस अवसर पर आकाश कुमार, आरती कुमार, जयशंकर प्रसाद , सुभाष चंद्र, विनोद बेसरा तथा श्याम सदा आदि उपस्थित थे।

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