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1996 में पंजाब कमाने गए सीताराम झा गलती से कर गए थे बॉर्डर पार

भागलपुर से एक युवक पंजाब कमाने जाता है और वह धोखे से हिंदुस्तान के बॉर्डर को पार कर पाकिस्तान चला जाता है फिर पाकिस्तान फौजी उसे बंदी बना लेती है और पाकिस्तान जेल में बंद कर देती है भारत सरकार की सिफारिश के बाद भागलपुर के युवक के साथ 36 कैदियों को बरी करता है और भारत सरकार को सौंप देती है लेकिन वह युवक ना तो पाकिस्तान के मुल्क में है और ना ही हिंदुस्तान में, इस केस में अचानक एक मोर भी आया है जो सचमुच सबको चौंका देने वाली है और दोनों मुल्क के सरकार पर सवाल खड़े करने वाली है,

भागलपुर की यह कहानी वीरजारा फिल्म को भी मात देते दिख रही है, वीरजारा का पात्र रिकॉर्ड में मर चुका है और वह दूसरे नाम से पाकिस्तान की जेल में सजा काट रहा है और वह अपने नाम की लड़ाई लड़ रहा है, यहां ऐसी कोई समस्या नहीं, यहां नाम भी वही और शख्स भी वही और स्थान भी वही, लेकिन भागलपुर के युवक सीताराम झा का पता नहीं कि वह कहां है? पाकिस्तान कि सरकार कह रही है कि हमने छोड़ दिया और हिंदुस्तान ने भी माना कि उसे प्राप्त कर लिया बावजूद इसके मां उषा देवी को बेटा सीताराम झा नहीं मिला है।

क्या है मामला?

भागलपुर के एकचारी मदारगंज का रहने वाला जगदीश झा का पुत्र सीताराम झा की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ,वह 1996 में कमाने के लिए पंजाब चला गया उसी दरमियान सीताराम गलती से बॉर्डर क्रॉस कर गया तभी पाकिस्तान की सेना ने सीताराम के साथ कुल 36 लोगों को बंदी बना लिया था उसके बाद भारत सरकार की सिफारिश के बाद पाकिस्तान सरकार ने उन 36बंदियों को रीहा कर दिया और भारत सरकार को सौंप दिया लेकिन भागलपुर मदारगंज का रहने वाला सीताराम की मां अभी भी अपने बेटे की तलाश में है उस मां को अभी तक उसका बेटा नहीं मिला है जो पाकिस्तान जेल में कैद था।अब सवाल यह उठता है कि सीताराम को पाक सरकार की ओर से अगर भारत सरकार को सौंप दिया गया तो सीताराम गया कहां?

मां उषा देवी पूछ रही कहां है मेरा बेटा सीताराम

70 वर्षीय वृद्ध मां उषा देवी जो अपने बेटे सीताराम को बरसों से ढूंढ रही है, वह सबोंसे सिर्फ एक ही सवाल करते दिखती है कहां है मेरा बेटा सीताराम? लेकिन इस सवाल का जवाब न तो भारत सरकार के पास है और ना ही पाकिस्तान सरकार के पास ,दो देशों के बीच यह सवाल खड़ा है, दोनों देश के सैनिकों के सामने यह सवाल खड़ा है। एक मां को आज भी उम्मीद है कि उसका बेटा घर जरूर लौटकर आएगा।

वर्षों बाद कहानी में नया मोड़

सीताराम झा के रिश्तेदार बरारी निवासी मुकेश कुमार पाठक लगातार सरकार से पत्राचार के माध्यम से इसकी सूचना ले रहे थे लेकिन एक दिन अचानक उन्हें अमृतसर स्थित सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रीय मुख्यालय से एक मेल आया और यह केस एक नया मोड़ ले लिया , इस मेल के जरिए पत्र में सीमा सुरक्षा बल के डीआईजी ने लिखा है कि उन्होंने सीताराम झा की भारत वापसी के संबंध में ब्यूरो ऑफ इमीग्रेशन विभाग से पूछा था उसके द्वारा बताया गया कि उनके दस्तावेज के अनुसार सीताराम नामक कैदी हिंदुस्तान को मिला ही नहीं है वही इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायुक्त एसके रेडी के अनुसार 31 अगस्त 2004 को 36 बंदियों को पाकिस्तान सरकार ने भारत सरकार को बाघा बॉर्डर पर सौंपा है जिसमें भागलपुर के युवक सीताराम झा का भी नाम शामिल है लेकिन सीताराम झा के बारे में कहा गया है उन्हें विक्षिप्त अवस्था में छोड़ा गया, अब सवाल यह उठता है कि आखिर सीताराम गया कहां? ना तो भारत सरकार कवूल कर रही है ,ना ही पाक की सरकार। अगर उसे विक्षिप्त अवस्था में भी छोड़ा गया तो उनके साथ देखने के लिए क्या प्रशासन नहीं थी ?

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