- माता – पिता की देखभाल के लिये प्रीति ने छोड़ दी नौकरी
ऋषव मिश्रा कृष्णा, नवगछिया
तेतरी की प्रीति झा डीएवी महेशखूंट में शिक्षक की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी. इसलिए कि अपने वृद्ध मां-पिता की देखभाल कर सके. जब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म अपनी सेल्फी चमकाते, कमेंट और लाइक की तलाश करते वर्चुअल दुनिया में
खोये युवाओं की जमात बढ़ने का दौर है तो प्रीति की कहानी कई संभावनाओं के द्वार खोलती है. प्रीति उस वक्त अपने मां-पिता का सहारा बनी जब उनके भाई ने वृद्ध दंपती की सुधि लेनी छोड़ दी थी. इतना ही नहीं, यह वही व्यक्ति है जो अपनी मां की श्राद्ध की श्राद्ध में काफी कहने बाद आया और पिता को कागज पर मृतक बता कर उनके नाम की जमीन बेच ली थी. यहां बेटी प्रीति ने पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों की नयी परिभाषा गढ़ दी. इस दौर में जहां कैरियर उत्थान के नाम पर वृद्ध मां-पिता के लिए कोई जगह नहीं रहती, प्रीति ने अपनी नौकरी छोड़ दी.
नवगछिया – तेतरी निवासी वयोवृद्ध रमेश्वर झा की देखभाल कौन करता अगर उनकी पुत्री प्रीति झा ने यह जिम्मेवारी अपने कंधे पर नहीं ली होती तो. छह माह से प्रीति विद्यालय नहीं गयी. प्रीति बताती है उसके पति भी प्राइवेट जॉब में ही हैं. आर्थिक
स्थिति को देखते हुए उन्हें नौकरी की आवश्यकता थी. लेकिन तेतरी स्थित उनके मायके में माता – पिता की देखभाल करने वाला कोई न था. मां कविता देवी एक वर्ष पहले ही बीमार पड़ गयी थी. वह छुट्टी लेकर बराबर तेतरी आती थी. लेकिन छः माह पहले मां की हालत ज्यादा खराब हो गयी. उनके गोल ब्लाइडर में पथरी थी. अंततः छः माह पहले उन्हें नौकरी छोड़ कर तेतरी आना पड़ा और हालात ऐसे हुए कि वह फिर विद्यालय नहीं जा सकी. 23 नवंबर को मां का निधन हो गया और श्राद्धकर्म के बाद पिता भी बीमार रहने लगे. उनकी हालत में सुधार हुआ तो भाई द्वारा पिता को मृत बता कर जमीन बिक्री करने की बात
सामने आयी. जानकारी मिलते ही उनके पिता की स्थिति ज्यादा
खराब हो गयी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है.
…अब उन्हें कैसे छोड़ दूं
प्रीति अपने पुराने दिनों में खो जाती है, वह कहती है, पिता दुमका में नौकरी करते थे. वे शिक्षा विभाग में क्लर्क थे. वे जहां भी रहे, मैं उनके साथ रही. उनके पिता की सोच प्रगतिशील थी. बेटा – बेटी में कभी फर्क नहीं किया. प्रीति कहती है कि दुमका से ही उसने एमए तक की पढ़ाई की और शादी के बाद देवघर से बीएड किया. प्रीति पुराने दिनों को याद करते हुए कहती है- उनकी हर छोटी बड़ी उपलब्धि से उनके पिता के आंखों में खुशी की ऐसी चमक दिखती थी, मानो दुनिया को उन्होंने मुट्ठी में कर लिया हो. जब वह उदास होती तो उनके पिता की मायूसी चेहरे पर साफ झलकती थी. प्रीति कहती है कि जब भी कुछ इच्छा जाहिर किया तो पिता ने जान लगा दिया. अब, आज उन्हें मेरी जरूरत है. इस
हालत में मैं उन्हें कैसे छोड़ सकती हूं.
पति सुमन भी है प्रीति के साथ
प्रीति कहती है कि उसका सौभाग्य है कि उसके ससुरालवाले काफी अच्छे हैं. शादी के बाद तो मध्यमवर्गीय लड़कियों के सपने घर गृहस्थी में दफन हो जाते हैं. लेकिन शादी के बाद उसने बीएड किया. इसके आधार पर वह डीएवी महेशखूंट में बतौर शिक्षिका चयनित हुई थी. इन दिनों वह आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रही हैं. लेकिन इस विषम पतिस्थिति में उसके पति सुमन उनके हर निर्णय में साथ रहते हैं. सुमन भी भागलपुर स्थित अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ हैं.