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भागलपुर जिले के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) में फिंगर क्लोन के जरिए हाजिरी बनाने का खेल चल रहा है। रविवार को जूनियर रेजिडेंट के बदले किसी और युवक द्वारा बायोमीट्रिक हाजिरी बनाने का मामला पकड़ में आने के बाद दर्जनों डॉक्टर जांच के दायरे में आ गए हैं।

अस्पताल प्रबंधन को भी बड़े पैमाने पर खेल होने का शक है। ऐसे में अब बायोमीट्रिक हाजिरी का विकल्प तलाशा जाने लगा है। अस्पताल अधीक्षक ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने न्यूरोलाजी विभाग के एचओडी को मामले की जांच करने का आदेश दिया है।

उन्होंने कहा कि इसे लेकर मुख्यालय एवं एनएमसी को पत्र लिखा जाएगा। जालसाजी से बचने के लिए फेस रिकाग्नाइजेशन अटेंडेंस मशीन (चेहरा पहचान उपस्थिति प्रणाली) लगवाने की कोशिश की जाएगी।

बता दें कि रविवार को जूनियर रेजिडेंट डा. गौतम निर्धारित समय पर अस्पताल नहीं पहुंचे थे। उन्होंने अपनी हाजिरी किसी और युवक से बनवा ली थी। शक होने पर गार्ड ने युवक को पकड़ लिया। कड़ाई से पूछताछ में उसने डाक्टर के बदले हाजिरी बनाने की बात स्वीकार ली। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फिंगर क्लोन बनाए बिना दूसरे की हाजिरी बनाना संभव है।

अस्पताल प्रबंधन को शक बायोमीट्रिक उपस्थिति के साथ खेल
अस्पताल अधीक्षक ने बताया दूसरे राज्यों में ऐसा हुआ कि जिस व्यक्ति की बायोमीट्रिक उपस्थिति बनानी है उसकी अंगुली का क्लोन बना दूसरे उपस्थिति बना दिया करते थे। जेएलएनएमसीएच में भी क्या वैसा ही हुआ है इसकी जांच कराई जाएगी। विशेषज्ञों के साथ मंथन किया जाएगा।

आधार से जुड़ा है बायोमीट्रिक, आता है मैसेज

अस्पताल अधीक्षक ने बताया कि बायोमीट्रिक उपस्थिति मोबाइल नंबर और आधार कार्ड से जुड़ा है। हाजिरी सीधे एनएमसी दिल्ली में आनलाइन माध्यम से बनती है। कर्मचारी की हाजिरी का आंकड़ा पटना मुख्यालय जाता है।

जूनियर रेजिडेंट की सफाई
इस मामले में जूनियर रेजिटेंड डा. गौतम ने अधीक्षक से कहा कि जिसने हाजिरी बनाई है उसे मैं नहीं जानता। मैंने अपनी उपस्थिति समय पर बना ली थी।

आठ घंटा पूरा करने का है खेल
जेएलएनएमसीएच में बायोमीट्रिक उपस्थिति का पहले से ही विरोध हो रहा था। जब विरोध काम नहीं आया तो दूसरा रास्ता निकाल लिया गया। बताया जा रहा है अस्पताल के कई चिकित्सक हैं जो मार्निंग वाक कर सीधे अस्पताल आकर हाजिरी बना लेते हैं और वापस अपने घर लौट जाते हैं।

फिर अपना क्लीनिक चलाने के बाद एक से दो बजे तक अस्पताल चले आते हैं। कुछ देर रहने के बाद फिर से हाजिरी बनाकर वापस हो जाते हैं। अस्पताल प्रबंधन ऐसे डाक्टरों पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से सफल नहीं सका है।

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