भागलपुर : कभी गन्ने की खुशबू और गुड़ की मिठास के लिए प्रसिद्ध भागलपुर का पीरपैंती इलाका अब गन्ने की खेती में पिछड़ता जा रहा है। 1980-90 के दशक में जहां 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती होती थी, अब वह सिमटकर मात्र 50 एकड़ तक रह गई है। सरकार की उदासीनता, मंदा बाजार, सिंचाई की असुविधा, और क्षेत्र में चीनी मिलों की अनुपलब्धता मुख्य कारण माने जा रहे हैं। किसान अब मक्का, गेहूं, और आलू जैसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
गन्ना किसान और व्यापारी ललन उपाध्याय ने बताया कि पहले उनकी 20 एकड़ जमीन पर गन्ना होता था, जो अब घटकर 5 एकड़ रह गया है। “सिंचाई के पानी और बाजार के अभाव में खेती घाटे का सौदा बन गई है। अब हम खेतों में आम के पेड़ लगा रहे हैं,” उन्होंने कहा।
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा) भागलपुर के निदेशक प्रभात कुमार ने बताया कि 25 किसानों को लखनऊ भेजकर उन्नत गन्ना खेती का प्रशिक्षण दिया गया है। नई तकनीक से गन्ने की उपज और गुणवत्ता में सुधार होगा। उन्होंने कहा, “गुड़ की मांग और कीमत चीनी से अधिक है, इसलिए हम चाहते हैं कि किसान इसे अपनाएं।”
किसान और व्यापारियों ने मांग की है कि सरकार सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त करे, गुड़ की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराए और क्षेत्र में चीनी मिल की स्थापना करे। इससे न केवल खेती पुनर्जीवित होगी, बल्कि किसानों को मुनाफा भी मिलेगा।
सरकार और स्थानीय प्रशासन की सकारात्मक पहल से पीरपैंती में गन्ने की खेती फिर से लहलहा सकती है। यह न केवल किसानों की आय में वृद्धि करेगा, बल्कि क्षेत्र की पहचान को भी पुनर्जीवित करेगा।
पवन कुमार, किसान: “सिंचाई और बाजार की कमी ने गन्ने की खेती से हमारा विश्वास खत्म कर दिया है।”
प्रभात कुमार, निदेशक, आत्मा भागलपुर: “हम किसानों को नई तकनीक सिखाकर गन्ना उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।”