भागलपुर के कहलगांव स्थित एनटीपीसी में लंबे अरसे से राखो का अंबार लगा रहता था। पड़े राख के ढेर से वातावरण काफी प्रदूषित भी हो जाता है। और एनटीपीसी में काम करने वाले कर्मचारी मजदूर व आस-पास के ग्रामीणों को भी राख केमिकल युक्त राख से काफी क्षति पहुंचती है। लोगों के आंख और फेंफडे प्रदुषण से काफ़ी प्रभावित होते हैं। बता दें कि कई मेट्रिक टन रखी एनटीपीसी के पावर ग्रिड से प्रतिदिन निकलता है,और रखरखाव की कमी के कारण लंबे समय से एनटीपीसी की जमीन पर पड़ा हुआ है। राख के अंबार से वातावरण काफी प्रदूषित हो जाता है। जिसको देखते हुए एनटीपीसी के आलाधिकारी के लिए यह चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि राख के ढेर को समाप्त करने के लिए एनटीपीसी के द्वारा विभागीय स्तर से कई बार अलग-अलग तरह की कोशिशें की गई।
गौरतलब हो कि कुछ वर्ष पूर्व एनटीपीसी बर्बाद राख को छुपाने के लिए इंजीनियर की टीम सुनिश्चित की गई। जिसमें केमिकल की मदद से उक्त राख से ईटें तैयार की गई। लेकिन ईट की गुणवत्ता मिट्टी के ईट के मुकाबले ज्यादा टिकाऊ नहीं हो पाए और देखते ही देखते राख की ईट की मांग कम होने लगी। कुछ वक्त के लिए तो एनटीपीसी से निकले राख का ढेर कम तो हुआ था। लेकिन ईट की डिमांड जैसे ही कम हुई,लाखों का ढेर फिर से बनना शुरू हो गया। और एक बार फिर एनटीपीसी के अधिकारियों के लिए यह चिंता बढ़ने लगी। वही एक फिर राख को खेपाने के लिए एनटीपीसी प्रबंधन ने एक नई रणनीति सुनिश्चित की है।
दरअसल आंध्र प्रदेश के रामागुंडम में एनटीपीसी और स्टील फैक्ट्रीयों के द्वारा जियो पॉलीमर कि 2 किलोमीटर दूरी की पायलट सड़क बर्बाद रखो से बनाई गई है। ठीक उसी तर्ज पर भागलपुर एनटीपीसी भी अपने कैंपस के भीतर लगभग 3 किलोमीटर का सड़क बना रही है। वहीं बिहार से सटे पड़ोसी राज्य झारखंड में भी एनटीपीसी द्वारा 9 किलोमीटर का सड़क इन राख से बनाई जा रही है। सड़क निर्माण को लेकर एनटीपीसी के इंजीनियर दावा कर रहे हैं एनटीपीसी से निकले राख से वे एक ठोंश और मजबूत सड़क का निर्माण कर सकते हैं। जिसकी औसतन वैधता दस वर्ष की होगी।
और यह टिकाऊ सड़क हर तरह से इस्तेमाल में उपयुक्त किया जा सकेगा। एक्सपर्टीज की माने तो एनटीपीसी के राख से बने सड़क को बनाने में पीसीसी सड़क के वनिस्पत कम खर्च में बन सकेगा। एनटीपीसी के जीएम केएस साहा, डीजीएम रैंक के पदाधिकारी मनीनाथ प्रसाद का अमर उजाला से बातचीत करते हुए का कहना है,कि सड़क बनाने के लिए एनटीपीसी के स्लैक मटेरियल से बने राख केमिकल मिक्स कर यह सड़क बनाई जाती है। यह केमिकल इतना असरदार होते हैं कि 20 मिनट के भीतर इसे राख बालू और कंक्रीट में लोहे के छड़ से बांधकर इसका ढांचा तैयार कर लिया जाता है। इस दौरान यह पूरी तरह जम जाता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल कंपनी इस केमिकल सड़क को पायलट प्रोजेक्ट के तर्ज पर अंडर ट्रायल में रखेगी जिस की गुणवत्ता जांच करने के पश्चात यह सरकार को हैंड ओवर करेगी। इंजीनियर एक्सपेरिमेंट को जनहित में करने की बात कहते हुए एक बड़ी उपलब्धि होने का दावा कर रहे हैं।
जबकि स्थानीय लोग भी साफ-सुथरी चिकनी सड़क पर हन हनाते हुए बड़े आराम से वाहन लेकर आ जा रहे हैं। स्थानीय लोगों से भी जब हमने पूछा तो उन्होंने भी इसकी सराहना करते हुए यह कहा है कि लगभग एक दशक बीत चुके थे और पिछले 2022 तक उन्हें पक्की सड़क के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी बच्चे पानी में डेंगी के सहारे पानी की पगडंडियों को पार कर स्कूल जाते थे। जबकि औरतों को बाजार जाना भी दूभर था ऐसे में इस तरह की पहल से एक नया बदलाव सामने आया है। राहगीर भी सड़क पर आ जा रहे हैं और उन्हें नई सड़क में कोई दुविधा नहीं हो रही है। वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधि पीरपैंती विधायक ललन पासवान ने सड़क की सफल कामना करते हुए इसे आगे प्रोसीडिंग के लिए केंद्रीय पथ परिवहन विभाग को भेजने का आश्वासन दिया है। विधायक ने कहा है कि इंजीनियर अगर अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं,तो यह गांव और शहर वासियों के बीच कनेक्टिविटी का एक बड़ा साधन बनेगा। गौरतलब हो कि केंद्र सरकार द्वारा पूर्वी क्षेत्र को दक्षिणी क्षेत्र से जोड़ने के लिए फोरलेन का तेज गति से निर्माण किया जा रहा है। वही कहलगांव एनटीपीसी मैं कार्यरत इंजीनियर द्वारा इस केमिकल सड़क के सफल एक्सपेरिमेंट से एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने की संभावनाएं जताई जा सकती है।