अपना देश कृषि प्रधान है और अपने इस भारतवर्ष में वृहद पैमाने पर मीठे बांस की खेती की जा रही है, बिहार भागलपुर के तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय अंतर्गत टीएनबी कॉलेज में देश का पहला बम्बू टिश्यू कल्चर लैब है जहां मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर तैयार किया जा रहे हैं, इस मीठे बांस के पौधे को पूर्ण रूपेण व्यावसायिक रूप में लाने के लिए इसे तैयार किया जा रहा है, वन विभाग भी इसमें अहम भूमिका निभा रही है, यहां के बम्बु टिशु कल्चर लैब से तैयार मीठे बांस के पौधे छपरा सिवान पूर्णिया सहित कई जगहों पर भेजे गए हैं , पहले यह आपको केवल जंगल झाड़ियां या अड्डे पर देखने को मिलती थी लेकिन अब इसकी खेती की तरफ किसान आकर्षित हो रहे हैं, वहीं भागलपुर में देश का पहला टिशू कल्चर लैब है जो बड़े पैमाने पर बांस के कई किस्म के पौधे को तैयार कर रहा है, उसमें से खास है मीठे बांस।
तिलकामांझी विश्वविद्यालय अंतर्गत लैब बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा स्पॉन्सर्ड लैब है। पहले बांस के टिशु को शोध कर रहे छात्रों द्वारा यहां तैयार किया जाता है जब यह तकरीबन 3 फीट के हो जाते हैं तब उसे वन विभागों को सौंप दिया जाता है, वन विभाग से लोग बिहार के अलग-अलग जिलों तक ले जाते हैं।
बम्बू मैन ऑफ बिहार व टिशू कल्चर लैब के नाम से मशहूर हेड प्रोफेसर डॉ अजय चौधरी ने बताया कि भारत का यह पहला लैब है जिसमें इतने वृहत पैमाने पर बांस का उत्पादन किया जा रहा है ,एक बार में लगभग 2 लाख पौधों को तैयार किया जाता है, वहीं इसकी खेती करने पर किसानों को दोगुना मुनाफा भी होता है। एक बार की लागत से करीबन 100 साल से भी ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। बंजर जमीन और वैसी जमीन जहां पर अन्य खेती होने की संभावना नहीं है वहां पर भी कई किस्म के बांस की खेती संभव है। सनातन धर्म में बांस की महत्वता काफी अधिक है।
20 वर्षों से पेड़ पौधों पर शोध कर रहे पीटीसीएल के परियोजना निदेशक प्रोफेसर डॉ अजय चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस मिशन के अंतर्गत वन विभाग मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर लगवाएगा किसानों को वन विभाग से ₹10 में यह पौधे मिलेंगे 3 वर्ष बाद इन पौधे की फिर जांच की जाएगी यदि किसानों द्वारा लगाए गए 50% से अधिक पौधे बचे रहते हैं तो वन विभाग की ओर से देखभाल के लिए प्रति पौधा ₹60 दिए जाएंगे और बांस के पौधे की कीमत ₹10 भी वापस कर दिए जाएंगे, पर्यावरण की दृष्टिकोण से भी बांस काफी अच्छा होता है, क्योंकि इसका पौधा सबसे अधिक तेजी से बढ़ता है जिस वजह से यह ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड अब्जॉर्ब करता है और ऑक्सीजन की मात्रा अधिक देता है और इस वजह से हमारे पर्यावरण को लाभ पहुंचता है। वहीं इसकी खेती से बिहार में उद्योग को भी बढ़ावा मिल सकता है बांस का उपयोग पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर व इससे दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने वाले समान को भी बनाया जा सकता है। वहीं बांस से एथेनॉल भी अधिक मात्रा में तैयार होता है । बम्बू मैन ने बताया कि खासकर पूरे बिहार में मीठे बांस की खेती होती है तो बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल जाएगी क्योंकि मीठे बात से अचार चिप्स कटलेट के अलावे कैंसर की दवाइयां भी तैयार की जा रही है, खासकर बांस की कई प्रजातियों का प्रयोग चीन ताइवान सिंगापुर जैसे देशों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है।