उत्पाद के क्षेत्र में भारत सरकार ने नैनो उर्वरक के तकनीक को किया पेटेंट, अब किसानों की बढ़ेगी आमदनी
भागलपुर का बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर लगातार उपलब्धियां बटोर रहा है, इसी कड़ी में एक और इतिहास रच डाला है अब बीएयू में विकसित नैनो उर्वरक को भारत सरकार के द्वारा पेटेंट मिला है। बिहार के इतिहास में ये पहली दफा है जो किसी कृषि विश्वविद्यालय को उत्पाद के क्षेत्र में पेटेंट मिला है। दरअसल बीएयू सबौर ने नैनो उर्वरक को विकसित किया है। यह उर्वरक यूरिया, डीएपी, एमओपी और जिंक सल्फेट की तुलना में चालीस प्रतिशत अधिक किफायती होगा।
एनएसपिसी नामक यह उर्वरक पारंपरिक उर्वरकों से सस्ता भी होगा। इस नैनो उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस पोटेशियम और जिंक मिला हुआ है। जिसका प्रतिशत फसलों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। बीएयू ने नैनो सिंथेसिस लैबोरेट्री में इसे तैयार किया गया है जूनियर साइंटिस्ट नींटू मंडल ने इसे तैयार किया है। बीएयू की ओर से नैनो उर्वरक के लिए 9 जुलाई 2020 को पेटेंट के लिए आवेदन दायर किया गया था। 6 मार्च को पेटेंट की स्वीकृति पेटेंट कार्यालय भारत सरकार से मिली 20 वर्षों के लिए यह स्वीकृति प्रदान की गई है और अब सर्टिफिकेट भी प्रदान कर दिया गया।
वैज्ञानिक निन्टू मंडल ने बताया कि 2015 से इसको लेकर काम शुरू किए थे इसका मुख्य उद्देश्य था कि देश में केमिकल खाद का प्रयोग जो हो रहा है उसका कम से कम प्रयोग हो क्योंकि वह हानिकारक होता है और फसलों के लिए नुकसानदायक होता है। इसको लेकर बेहतर उर्वरक जिसमे किसान की कम लागत लगे और फसल के लिए बेहतर हो इस दिशा में काम कर रहे थे। यह ऐसा उत्पाद है जिसमे नाइट्रोजन ,फॉस्फोरस, पोटेशियम,जिंक चारों मिलेगा म फसल के अनुसार इसका डोज होगा। इससे किसानों को काफी फायदा होगा।
बीएयू के कुलपति प्रोफेसर दुनिया राम सिंह ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय में पहली बार ऐसा है कि नैनो के ऊपर हमें पैटेंट मिला है संभवत देश का यह पहला पेटेंट है जो मुलटीन्यूट्रेंट को मिला है। हमारा नैनो उर्वरक किसानों के लिए काफी फायदेमंद होने वाला है। काफी दिनों से वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे थे। अभी जो उर्वरक का प्रयोग कर रहे हैं उस से फसलों को काफी नुकसान होता है। इस सफलता के बाद हमने सरकार को पत्र लिखा है कि हमारे पास तकनीक है और ऐसी कौन सी फर्टिलाइजर कंपनी है जो हमारे तकनीक को लेकर मॉडल तैयार करें और उर्वरक प्रोडक्शन करें साथ ही किसानों के बीच पहुंचाएं इससे तीस से चालीस प्रतिशत केमिकल फर्टिलाइजर की बचत होगी।