नवगछिया – कोसी के जलस्तर में कमी आने के साथ ही बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर गांव के गुवारीडीह बहियार में पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व वाली चीजों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है. जयरामपुर गांव के ग्रामीण अविनाश कुमार के नेतृत्व में चलाए जा रहे सर्च अभियान के क्रम में ग्रामीणों की आंखें तब फटी रह गई जब एक पुराने दीवार का स्पष्ट साक्ष्य सामने आया. यह दीवार गुवारीडीह टीले के दो फीट नीचे से शुरू हुआ है.
अनुमान लगाया जा रहा है कि मिले साक्ष्य दीवार का ऊपरी हिस्सा है और इसका नीचे का हिस्सा कोसी नदी के सतह से काफी नीचे है. ग्रामीणों ने सावधानी पूर्वक करीब 10 फीट चौड़ाई में दीवार को बाहर निकाला है. दीवार में 1 फीट लंबे और 1 फीट चौड़े ईट का प्रयोग किया गया है.
मालूम हो कि चानन नदी में मिले ईंट की लंबाई चौड़ाई थी गुवारीडीह में मिले दीवार की ईंटों से बराबर है. जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि चानन और गुवारीडीह में एक ही तरह की सभ्यता रही होगी. इतिहासकार उक्त अवशेष को बौद्ध कालीन अवशेष बता रहे हैं तो कुछ इतिहासकार इसे कुषाण कालीन भी कह रहे हैं. जयरामपुर के ग्रामीण अविनाश कुमार के नेतृत्व में चलाए जा रहे सर्च अभियान में और भी कई तरह की चीजों को कोसी नदी के कछार से निकाला गया. जिसमें सुंदर कलाकृतियों वाले मिट्टी के बर्तन, पत्थरों को खींच कर बनाए गए औजार और जानवरों की हड्डियां और दांत शामिल है.ग्रामीण अविनाश कुमार ने कहां की वे लोग करीब 10 माह से गुवारीडीह में सर्च अभियान चलाकर सामग्री को इकट्ठा कर रहे हैं. सभी सामग्री को सुरक्षित रखा गया है. इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले लोग और इतिहास के विद्वान, इतिहासकार आए दिन सामानों को देखने आते रहते हैं. सरकार से उन लोगों की मांग है कि गुवारीडीह की सम्यक कहानी सामने आए और यह ऐतिहासिक धरोहर घोषित हो. सर्च अभियान में ग्रामीण कुक्कू कुमार और विकास कुमार के अलावा अन्य युवक भी प्रमुखता से शामिल रहते हैं. गुवारीडीह में दीवार के साक्ष्य मिलने के बाद यह पुरातत्वविदों के लिए चर्चा का विषय बन गया है. इस कारण बिहार झारखंड के कई इतिहासविदों और पुरातत्वविदों की गुवारीडीह पर प्रत्यक्ष नजर है.
प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के प्राध्यापक डॉक्टर दिनेश कुमार गुप्ता ने बताया कि दीवार मिलना बहुत ही उत्साहित करने वाला घटनाक्रम है. उन्होंने कहा कि इससे यह तथ्य और भी पुष्ट होता है कि यहां पर एक मिली-जुली सभ्यता विकसित रही थी. इस सभ्यता की शुरुआत कुषाण कालीन हो सकती है. अब तक मिले सामानों में स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि कुछ सामान कुषाण कालीन है कुछ सामान बौद्ध कालीन है तो कुछ ऐसे भी सामान है जो 12 से 15 वर्ष पुराने हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यहां की सभ्यता 3000 वर्ष पुरानी रही होगी. उन्होंने कहा कि जब चंपा अंग प्रदेश की राजधानी रही होगी तो उस समय गुवारीडीह एक बड़ा बंदरगाह या सराय रहा होगा. पुरातत्वविद डॉक्टर पवन शेखर ने कहा कि गत दिनों ही चानन नदी से पुरातत्व महत्व वाले ईंट बरामद हुई थी, चांदन में मिले ईद और यहां मिले ईद दोनों मिलते जुलते हैं. इससे कहा जा सकता है कि जब चंपा की नगरी है सभ्यता विकसित रही होगी तो नवगछिया इलाके में भी उसी तरह की सभ्यता विकसित रही होगी. गुवारीडीह एक महत्वपूर्ण स्थल है और सरकार को इसे संरक्षित करना चाहिए.
विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बिहारी लाल चौधरी ने कहा कि करीब 7 माह से विभाग गुवारीडीह पर काम कर रहा है. कोरोना काल में कार्य प्रभावित हुआ. गुरुवार को यहां मिले दीवार के साक्ष्य का अध्ययन विभाग के विद्वानों द्वारा किया जा रहा है. जल्द ही विभाग के तरफ से एक रिपोर्ट जारी किया जाएगा. साथ ही मिले सामानों को भी संरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.