नवगछिया के गोपालपुर प्रखंड के गोसाई गांव के मध्य विद्यालय में स्थापित मां सरस्वती के मंदिर को विद्यालय का हृदय कहा जाता है, लेकिन इस वर्ष बसंत पंचमी के अवसर पर वहां न तो अगरबत्ती जली और न ही एक पुष्प अर्पित किया गया। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब इस विद्यालय से जुड़े शिक्षक लाखों रुपये का वेतन लेने के बावजूद अपने कर्तव्यों से विमुख दिखे।
ग्रामीणों ने इस उपेक्षा पर कड़ी नाराजगी जताई और सवाल उठाया कि आखिर यह जिम्मेदारी किसकी थी? जब विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक अपनी परंपराओं और संस्कृति के प्रति इस कदर उदासीन हैं, तो बच्चों को क्या सीख मिलेगी? क्या शिक्षक केवल वेतन लेने और उपस्थिति दर्ज कराने तक सीमित रह गए हैं?
स्थानीय लोगों का कहना है कि शिक्षा के इस मंदिर में देवी सरस्वती की पूजा न होना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह उन लोगों की मानसिकता को भी दर्शाता है जो अपने मूल्यों और कर्तव्यों को भूल चुके हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन इस मामले पर ध्यान दे और शिक्षकों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराए।
प्रशासन से जवाबदेही की मांग
इस उपेक्षा को लेकर ग्रामीणों ने शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन से कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि शिक्षक ही अपने विद्यालय की परंपराओं को दरकिनार करेंगे, तो आने वाली पीढ़ी से क्या अपेक्षा की जा सकती है? अब देखना होगा कि संबंधित अधिकारी इस पर क्या कदम उठाते हैं।