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सुबह करीब 5 बजकर 38 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस लीं. पिछले दिनों उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव (Coronavirus Positive) आई थी, लेकिन इस उम्र में भी उन्होंने कोरोना को हरा दिया था.

महाशय धर्मपाल मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह रहे. उनका जन्म 27 मार्च 1927 को सियालकोट में हुआ था

मशहूर MDH मसालों (MDH Masala) के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी (Mahashay Dharampal Gulati) का निधन हो गया है. वे 98 साल के थे. सुबह करीब 5 बजकर 38 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस लीं. पिछले दिनों उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव (Coronavirus Positive) आई थी, लेकिन इस उम्र में भी उन्होंने कोरोना को हरा दिया था. महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन हार्ट अटैक (Heart Attack) की वजह हुआ है. पिछले साल ही उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

मसालों की दुनिया के बादशाह (King of Spices)

महाशय धर्मपाल मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह रहे. उनका जन्म 27 मार्च 1927 को सियालकोट (Sialkot, Pakistan) में हुआ था. 1933 में इन्होंने पांचवी कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. 1937 में महाशय ने पिता की मदद से शीशे का छोटा सा बिजनेस शुरु किया. उसके बाद साबुन और दूसरे कई बिजनेस किए लेकिन उनका मन नहीं लगा. बाद में उन्होंने मसालों का कारोबार शुरू किया, जो उनका पुश्तैनी कारोबार था. MDH का पूरा नाम Mahashian Di Hatti है. सालों से महाशय धर्मपाल गुलाटी MDH मसालों के विज्ञापन में आ रहे थे. देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया.

छोटी सी पूंजी से शुरू किया कारोबार

सियालकोट के बाजार पंसारिया में धर्मपाल के पिता चुन्नीलाल मिर्च मसालों (Chunnilal mirch masala) की एक दुकान चलाते थे जिसका नाम महाशियां दी हट्टी था. यही महाशियां दी हट्टी आज मसालों की दुनिया में MDH के नाम से एक बड़ा ब्रांड बन चुकी हैं. 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी करोलबाग में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी. महाशय धर्मपाल के परिवार ने छोटी सी पूंजी से कारोबार शुरू किया था लेकिन, कारोबार में बरकत के चलते वह दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में दुकान दर दुकान खरीदते चले गए.

1959 में लगाई पहली फैक्ट्री (MDH First Masala factory)

सियालकोट के दिनों से ही मसालों की शुद्धता गुलाटी परिवार (Gulati Family business) के धंधे की बुनियाद थी. यही वजह थी कि धर्मपाल ने मसाले खुद ही पीसने का फैसला कर लिया. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. वो भी उन दिनों में जब बैंक से कर्ज लेने का रिवाज नहीं था. लेकिन महाशय धर्मपाल की ये मुश्किल ही उनकी कामयाबी की वजह बन गई. गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी. 93 साल के लंबे सफर के बाद सियालकोट की महाशियां दी हट्टी आज दुनिया भर में MDH के रूप में मसालों का ब्रांड बन चुकी है. साल 2017 में उन्हें इंडिया में किसी भी FMCG कंपनी का सबसे ज्यादा वेतन पाने वाला CEO भी घोषित किया गया था.

क्या था महाशय की सफलता का राज? (What was the secret of MDH success?)

महाशय धर्मपाल एक बात कहा करते थे कि जिंदादली इसी का नाम है, मुर्दा क्या खाक जिया करते हैं, हम जिंदा रहेंगे आपके प्यार से, अच्छा काम करो मरने के बाद भी इंसान जिंदा हो जाता है. यहीं से महाश्य जी की सफलता का कारवां शुरु होता है, इनकी सफलता का कोई बड़ा फॉर्मूला नहीं है. ग्राहकों के प्रति ईमानदारी ही महाशय जी की सफलता का राज है.

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