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वैशाख शुरू होने के साथ ही सत्तुआनी का महापर्व मनाया जाता है. उत्तर भारत में कई जगहों पर इसे मनाने की परंपरा काफी पहले से चली आ रही है. गोसाई गांव की रहने वाली ममता झा ने दिल्ली के दिलशाद गार्डन में अपने आवास पर पूरे नियम निष्ठा के साथ सिरुवा विशुवा पर्व मनाया । दूरभाष पर उन्होंने बताया कि अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव स्थापित करती हैं. इस दिन दाल से बने सत्तू खाने की परंपरा होती है. सत्तुआनी का महापर्व 14 एवं 15 अप्रैल को मनाया। सत्तुआनी के पर्व पर सत्तू, गुड़ और चीनी से पूजा की होती है. इस त्यौहार पर दान में सोना और चांदी देने का भी बड़ा महत्व है. पूजा के बाद लोग सत्तू, आम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को जूड़ शीतल का त्यौहार मनाया गया . 14 अप्रैल को सूर्य मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. इसी के उपलक्ष्य में यह त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है. जुड़ शीतल का त्यौहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है.
सत्तुआनी के पर्व से ठीक एक दिन पहले मिट्टी के घड़े में जल को ढंक कर रखा जाता है. फिर शीतल के दिन सुबह पूरे घर में उसी जल का पवित्र छिड़काव करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस बासी जल के छींटों से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है.

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