भागलपुर के मायागंज इलाके में दीपावली का पर्व नजदीक आते ही संजय कुम्हार और उनका परिवार दीए बनाने में व्यस्त हैं। यह उनका काम का पीक सीजन है, और वे दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। हाथ से बने मिट्टी के दीए तैयार करने में संजय ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन उनकी मेहनत का फल उन्हें ठीक से नहीं मिल रहा है, जिससे उनके चेहरे पर मायूसी छाई हुई है।
भागलपुर के शहरी इलाकों में अन्य क्षेत्रों से भी तैयार किए गए दीए पहुंचते हैं, जो स्थानीय कुम्हारों की बिक्री को प्रभावित कर रहे हैं। संजय ने बताया कि पिछले 10 वर्षों से वह दीए बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन इस साल उन्हें महसूस हो रहा है कि बाजार में लाइट वाले दीयों की मांग अधिक है। ऐसे में लोग मिट्टी के दीए की बजाय लाइट वाले दीए खरीदना पसंद कर रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी में कमी आई है।
संजय की पत्नी और पुत्र भी इस काम में उनका साथ देते हैं। संजय का कहना है कि दीपावली का पर्व उनके लिए खुशी का समय होता था, लेकिन इस बार बिक्री में कमी के कारण उनकी चिंता बढ़ गई है।
दीपावली में अभी कई दिन बाकी हैं, लेकिन कुम्हार समाज के लोग पहले से ही दीए और मूर्तियों के निर्माण में जुटे हुए हैं। संजय और उनके परिवार के लिए यह पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि संघर्ष और मेहनत का प्रतीक बन गया है।
संजय की मेहनत और उनके परिवार की लगन के बावजूद बाजार की स्थिति ने उन्हें निराश किया है। यदि इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया, तो यह उनके परिवार के लिए मुश्किल वक्त साबित हो सकता है।