बिहपुर – मध्य विद्यालय मैदान, मड़वा में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित श्री हरि कथा के तीसरे दिन सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी अमृता भारती जी ने कहा कि भगवान भक्तों के साथ गुल्ली और डंडे का खेल खेलते हैं.जिस प्रकार गुल्ली पर डंडे से प्रहार किया जाता है तब गुल्ली काफी लंबी दूरी कर लेती है ठीक इसी प्रकार भगवान भी भक्तों को परिस्थितियों की मार देकर उसे ऊंचाई तक पहुंचाते हैं.एक बार प्रभु ने एक ऐसे ही अनन्य भक्त, भक्त नरसी को परिस्थितियों की आंच देकर उसे सांसारिक कु चक्रों से बाहर निकाला.
श्री हरि भगवान ने नरसी का ही रूप धारण कर उसके समृद्धशाली महल में आ पहुंचे। नरसी धनाढ्य सेठ थे लेकिन एक भी पैसा धार्मिक कार्यों में नहीं लगाते। बड़े ही कंजूस स्वभाव के थे. ग्रंथ कहते हैं धन तभी सार्थक है जब उसे धर्म के कार्यों में लगाया जाए. साध्वी जी ने दान की महिमा का बखान करते हुए कहा कि ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए जीवन का दान दिया, दानवीर कर्ण ने अपना सब कुछ दान में दिया शास्त्रों में अनेकों जगह पर पिंड दान, गौदान,
कन्यादान आदि का वर्णन है.द्रौपदी ने निष्काम भाव से साड़ी के किनारे श्रीकृष्ण को अर्पित किया इतिहास साक्षी है की श्रीकृष्ण ने उस छोटे से दान के बदले कैसा महादान दिया, वस्त्रा अवतार लेकर.लेकिन दान देते वक्त हमेशा सुपात्र को ही दें सुपात्र को नहीं। यदि दान रावण जैसे अधर्मी को दिया तो हालत मां सीता के समान हो सकती है, आप भी छले जा सकते हैं. इसलिए अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए आप सभी अवश्य योगदान दें.क्योंकि खाया पिया अंग लगेगा, दान किया संग चलेगा, बाकी बचा तो जंग ही लगेगा। कार्यक्रम में समस्त साउथ बलिहारी धनवाद के श्रद्धालुओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा.