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अभी तक लोग दुर्गा उपासना के लिए संस्‍कृत में उपलब्‍ध श्रीदुर्गा सप्‍तशती का पाठ किया करते थे। लेकिन अब संस्‍कृत में पढ़ी जाने वाली श्रीदुर्गा सप्‍तशती का बेहतर विकल्‍प सबके सामने आ चुका है। भागलपुर नवगछिया के श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्‍वामी आगमानंद जी महाराज ने श्रीदुर्गाचरितमानस नाम से एक अद्भुत अनुपम ग्रंथ की रचना की है। इस ग्रंथ में उन्‍होंने संस्‍कृत में उपलब्‍ध दुर्गा सप्‍तशती का अवधी में अनुवाद किया है। यह पुस्‍तक की रचना में चौपाई, छंद, दोहा, सोरठा आदि का इस्‍तेमाल किया गया है। जो बहुत ही सहज और ग्राह्य है। लययात्‍मक ढंग से इसकी रचना की गई है। बहुत ही आसान शब्‍दों का उपयोग किया गया है। दुर्गा सप्‍तशती संस्‍कृत में उपलब्‍ध होने के कारण आज के नई पीढ़ी के लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में यह पुस्‍तक वैसे लोगों के लिए बेहतर विकल्‍प के रूप में उपलब्‍ध है।
स्‍वामी आगमानंद जी महाराज ने बताया कि जिस प्रकार बाल्मिकी कृत रामायण (संस्‍कृत भाषा) को तुलसीदास ने रामचरितमानस (अवधी भाषा) के रूप में रूपांतर‍ित किया है, उसी प्रकार दुर्गा सप्‍तशती का भी संस्‍कृत से अवधी में अनुवाद किया गया है। रामचरितमानस की तरह ही यह पढ़ने में आसान है। इसमें चौपाई, छंद, दोहा, सोरठा आदि उसी प्रकार हैं, जैसे रामचर‍ितमानस में है। पढ़ने का लय भी उसी प्रकार है। इसे पाठ करने से भी वही फल प्राप्त होता है, जो दुर्गा सप्‍तशती पढ़ने से होता है।

108 दिनों में हुई है रचना
स्वामी आगमानंद जी ने कहा कि श्रीदुर्गाचरितमानस का प्रथम संस्‍करण वर्ष 2021-02 में आया था। इसके बाद से इसके छह संस्‍करण का चुके हैं। इसकी रचना उन्‍होंने 108 दिनों में की है। लगातार तीन वर्षों तक चारों नवरात्र के दौरान उन्होंने इस ग्रंथ को रचा है। 108 दिनों में उन्होंने एक ग्रंथ को लिप‍िबद्ध किया है। उनकी इस रचना को आड‍ियो व वीडियो के रूप में भी रूपांतरित किया जा चुका है। भजन सम्राट भ्रमरपुर निवासी डा. हिमांशु मोहन मिश्र ‘दीपक’ ने इसमें स्वर दिया है।

जीवन परिचय
परमहंस स्‍वामी अगमानंद जी महाराज का वैष्‍णवनाम-स्‍वामी रामचन्‍द्राचार्य है। इसका पूर्वाश्रम नाम-रामचंद्र पांडेय ‘रसिक’ है। इनका आश्रम नवगछिया में है। उनका पैतृक आवास नवगछिया के नगरह में है। स्मृतिशेष यदुनंदन पांडेय और राधा देवी की संतान रामू आज स्वामी आगमानंद के रूप संपूर्ण भारत में भ्रमण करते हैं। वे दिव्य संत हैं। आपना जीवन सनातन धर्म के लिए उन्होंने समर्पित किया है। लोगों के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
उनका जन्म रामनवमी को हुआ है। तीन भाई और एक बहन में स्वामी आगमानंद जी सबसे बड़े हैं। वे बाल ब्रह्मचारी हैं। स्‍वामी आगमानंद जी महाराज श्रीश‍िवशक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्‍वर हैं। यह योगपीठ नवगछिया के लक्ष्मीपुर रोड पर स्थित है। श्री उत्तरतोताद्रि मठ विभीषणकुंड अयोध्या के पीठाधीश्वर श्रीमदजगदगुरु रामानुजाचार्य अनंत श्री विभूषित बाल ब्रह्मचारी स्वामी अनन्ताचार्य ने अपने शिष्य स्वामी आगमानंद जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। स्वामी आगमानंद जी ने पूरे देश में आठ लाख से ज्यादा लोगों को आध्यात्मिक दीक्षा दी है। हालांकि उनके अनुयायियों की संख्या 15 लाख के आसपास है।

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