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कई वर्षों से लोग पेड़ों पर रह कर काट रहे पक्षियों की तरह अपना जीवन

भागलपुर,आईये आपको ले चलते है बिहार भागलपुर स्मार्ट सिटी से महज 3 किलोमीटर दूर गंगा के किनारे बसे सबौर स्थित एक ऐसा अजीवोगारिव गांव जो पक्षियों के घोसलों के लिए नहीं बल्कि इंसानों के घोसलों के लिए प्रसिद्ध है, यहां कई वर्षों से लोग पेड़ों पर रह कर पक्षियों की तरह अपना जीवन काट रहे हैं। उस गांव का नाम है संतनगर।

भागलपुर जिले का एक ऐसा गांव जहां लोग पक्षी की तरह अपना जीवन यापन करते हैं. यंहा के लोग घरों में नहीं बल्कि पेड़ो पर रहते हैं. इतना ही नहीं अपने बच्चे व जानवरों के साथ पेड़ों पर रहने को विवश हो जाते हैं. यंहा तक कि घरों में बड़ा बड़ा जहरीला सांप रहता है और उसके बीच वहलोग रहते हैं. ये कहानी है जिले के सबौर प्रखंड के संतनगर बगडेर बगीचा की. दरअसल जिले में प्रसिद्ध यह बगीचा चिड़ियों की घोसलों के लिए नहीं बल्कि इंसानों की घोंसलो के लिए प्रसिद्ध है. पूरा जिला बाढ़ की चपेट में आता है. इसके साथ ही कटाव भी जिले में होता है. कटाव पीड़ित अपना आशियाना ढूंढने में लग जाते हैं. बाबूपुर, रजनन्दीपुर बहुत बड़ा गांव हुआ करता था. जो धीरे धीरे गंगा के आगोश में समाते चला गया. लोग अपना ठिकाना ढूंढने लगे. तभी वहां के लोग संतनगर में आकर बस गए. यह इलाका निचली इलाका होने के कारण पूरी तरीके से डूब जाता है. यंहा के लोगों को जीवन यापन करना काफी दुर्लभ हो जाता है. न पीने का पानी, न शौचालय की व्यवस्था और न खाने का समान, ना ही बीमार होने पर चिकित्सा सुबिधा,कैसे कटती होगी जिंदगी ये सोचकर भी हैरान कर देने वाली बात है. अगर आप इस परिदृश्य को सोचेंगे तो आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. लेकिन करीब 50 वर्षों से इनकी जिंदगी ऐसे ही कट रही है. हर वर्ष अपना नया आशियाना बनाते हैं और हर वर्ष बाढ़ में टूट जाता है. गांव के लोगों ने बताया कि अगर हमलोगों को सरकार कहीं जमीन दे दे तो हमलोग किसी तरह मकान बना कर रहेंगे. लेकिन यहां सरकारी जमीन है पक्के का मकान नहीं बना सकते हैं.

इस बार नहीं बचा घोंसला

इस बार इंसानों के बनने वाले सहारे पेड़ भी अब नहीं बचे. बाढ़ का समय आ गया है. यंहा के लोग 13 फिट ऊंची मचान बनाने में लग गए हैं. धीरे धीरे अपने समानों को सुरक्षित जगह पर ले जाने लगे हैं. गांव की महिला अनिता देवी ने बताया कि पानी आते ही कष्टदायक जिंदगी हो जाती है. यंहा तक कि कोई सहारा नहीं होता है. सरकार के तरफ से नाव तक कि व्यवस्था नहीं कि जाति है. हमलोग चदरा का नाव बनाते हैं. उससे आना जाना होता है लेकिन हमेशा डर बना होता है. चदरा का नाव तेज धार में जाने पर बह जाएगा लेकिन फिर भी उस पर सफर करना पड़ता है. अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो उसका ही सहारा लेना पड़ता है. कई बार खुले आसमान के बीच अपना समय व्यतीत करना पड़ता है. बारिश में बोरी का सहारा लेकर हमलोग रहते हैं. उन्होंने सरकार से पूरी व्यवस्था की मांग की है ताकि बाढ़ में कोई समस्या न हो.

ग्रामीण उमेश मंडल ने कहा हमलोग वर्षों से पेड़ पर रहने को विवस हैं, हमलोगोँ का घर वर्षों पहले कट गया है, सरकार भी कभी ध्यान नहीं दी, हमलोग बाढ़ के समय काफी दिक्कत झेलते हैं, अपने बच्चों के साथ जहरीले साप विच्छु को सुलाने पर मजबूर होना होता है।

गांव की महिला अनिता देवी ने बताया कि पानी आते ही कष्टदायक जिंदगी हो जाती है. यंहा तक कि कोई सहारा नहीं होता है. सरकार के तरफ से नाव तक कि व्यवस्था नहीं कि जाति है. हमलोग चदरा का नाव बनाते हैं. उससे आना जाना होता है लेकिन हमेशा डर बना होता है. चदरा का नाव तेज धार में जाने पर बह जाएगा लेकिन फिर भी उस पर सफर करना पड़ता है.

गीता देवी ने कहा अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो उसका ही सहारा लेना पड़ता है. कई बार खुले आसमान के बीच अपना समय व्यतीत करना पड़ता है. बारिश में बोरी का सहारा लेकर हमलोग रहते हैं. उन्होंने सरकार से पूरी व्यवस्था की मांग की है ताकि बाढ़ में कोई समस्या न हो.

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