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ऋषव मिश्रा “कृष्णा” नवगछिया –

नौका हादसे के दूसरे दिन भी दर्शनिया घाट पर शुक्रवार को दिन भर लोगों की आवाजाही जारी रही. दर्शनियां घाट पर अमूमन इतनी भीड़ तब दिखती है जब माघी पूर्णिमा का मेला होता है या फिर गंगा घाट पर कोई धार्मिक आयोजन. एक तरफ लोगों की नजरें गंगा की उठती गिरती लहरों पर टिकी थी तो दूसरी तरफ गंगा की लहरें हर पल एक दर्दनाक कहानी उगल रही थी. कभी पॉलिथीन में बंद सत्तू की पोटली लहरों के बीच बहे जा रहा था तो कभी तो कभी लोगों ने रोटियों को लहरों के बीच बहते देखा. गंगा की लहरें एक के बाद एक कहानी कह रही थी और लोग आह भरते हुए भगवान को कोस रहे थे कि आखिर इन गरीबों का क्या कसूर था. तभी एक ही तरह के दो हवाई चप्पल नदी के लहरों पर लोगों ने बहते हुए देखा. लोग जब तक कुछ अंदाजा लगाते तबतक गंगा तट पर सूनी आंखों से गंगा की लहरों को निहार रहे लत्तरा निवासी कारे लाल यादव अनायास बोल उठते हैं देखो यह मेरी बेटी का चप्पल है. तभी गंगा की लहरें कारेलाल के आंखों में उतर आती हैं और यह लहरें अश्रु धारा के रूप में बहने लगती हैं. कारे लाल गंगा के इन लहरों में अपनी बेटी सीता देवी और नाती रणवीर कुमार को खो चुके हैं. कारे लाल कहते हैं रोजाना सीता तो अपने पति के पास 12 सीट बाजार खाना लेकर या मक्का बोने जाती थी लेकिन गुरुवार को बहुत दिनों के बाद पहली बार उसका 12 वर्षीय नाती रणवीर भी अपनी मां के साथ गया था. कारे लाल कहते हैं उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह करीब 15 वर्ष पहले शंकर यादव के लड़के पप्पू यादव से किया था. सीता मेहनती थी और वह अपने पति के काम में हाथ बटाती दी थी जिसके कारण परिवार का गुजारा किसी न किसी तरह हो ही रहा था. कारेलाल यह याद करके रो पड़ते हैं कि उसका नाती जब भी उनसे मिलने आता तो यह कहता था कि जिस तरह आपने मुझे बचपन में लाड़ प्यार दिया उसी तरह एक दिन आपके सारे खर्चे मैं उठाऊंगा और आपको काम नहीं करने दूंगा. यह कहते ही वृद्ध कारे लाल फफक कर रोने लगते हैं. कारे लाल कहते हैं बस एक बार वह अपनी बेटी और नाती को देखना चाहते हैं. इस आस में वे देर शाम तक गंगा तट पर बैठकर लहरों को निहारते रहे लेकिन आज भी उन्हें मायूसी हाथ लगी.


जिंदगी की तलाश में रोज मौत का खेल खेलते हैं तटवर्ती इलाके के लोग


नवगछिया – नवगछिया में अवैध रूप से नाव का परिचालन कोई बड़ी बात नहीं है. तटवर्ती इलाके के लोग रोजाना जिंदगी की तलाश में मौत के साथ खिलवाड़ करते हैं. तटवर्ती इलाके के किसी भी गांव की 60 फीसदी आबादी खेती और खेतों में मेहनत मजदूरी पर निर्भर है. गंगा तट हो या को कोसी तट नवगछिया अनुमंडल के सैकड़ों लोग रोजाना नदी के पार जाकर या तो अपने खेतों में काम करते हैं या फिर दूसरे के खेत में मेहनत मजदूरी. अब वे किस तरह नदिया पार जाते हैं इसकी जानकारी जिम्मेदार लोगों को नहीं है. यहां तक कह जा रहा है कि दर्शन मांझी ट्रेक्टर तक नाव से पार करा देते हैं. दर्शनिया घाट पर नाव पर सवार अधिकांश महिलाएं और लड़कियां 12 सीट बहियार मकई की बोने करने जा रही थी तो दूध विक्रेता दूध का संग्रह करने जा रहे थे. टीनटेंगा गांव के कई किसान ऐसे भी हैं जिसने 12 सीट में अपना बासा बना कर पशुपालन और खेती करते हैं. ऐसे लोगों के लिये रोज उसके घर से महिलाएं खाना के कर 12 सीट जाती हैं. अगर यह लोग रोजाना नदी पार कर 12 सीट दियारा नहीं जाएंगे तो 2 जून की रोटी का जुगाड़ होना मुश्किल है. ऐसे में जिम्मेदार लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि उनके लिए आवागमन की मुकम्मल व्यवस्था कर दी जाए. सवाल सिर्फ दर्शनिया घाट का नहीं बल्कि नवगछिया अनुमंडल के 50 से अधिक अवैध रूप से संचालित हो रहे घाटों की भी है जहां से लोग रोजाना दो जून की रोटी तलाश करने नदिया पार जाते हैं.

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