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नवगछिया के खगड़ा में चल रहे नौ दिवसीय शतचंडी महायज्ञ और रामकथा महायज्ञ के पांचवें दिन प्रवचन करते हुए परमहंस स्वामी आगमानंद महाराज ने सीता जन्मोत्स्व की कथा सुनाई. कथा की शुरुआत उन्होंने आरती रामायण से की. इस दौरान गायक माधवानंद ठाकुर व बलवीर सिंह बग्घा ने आरती के अलावा कई भजनों को प्रस्तुत किया. स्वामी आगमानंद ने कहा कि हमारा प्राचीन विज्ञान इतना गौरवशाली था कि कुश के पुतले बालक बना दिया गया था. वैज्ञानिक वाल्मीकि आध्यात्मिक विज्ञान के पुरोधा थे. आज का कोई वैज्ञानिक ऐसा नहीं कर सकता है.

प्राचीन ऋषि मुनि में भी विज्ञान के प्रति निष्ठा थी, वे अपने आध्यात्मिक शक्ति से सब कुछ कर सकते थे. स्वामी आगमानंद ने गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस की चौपाई को सुनाते हुए कहा कि- माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख्य माहीं. मनवा तो चहुं दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नहीं॥ इसलिए उन्होंने कहा जप श्रद्धा और मन से करें. कहा इस प्रकार से जप, ध्यान और नाम जपने से कल्याण होता है, चाहे एक घडी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध। तुलसी संगत साधु की, हरे कोटि अपराध।।

स्वामी आगमानंद जी ने भगवान राम के बाल लीला की चर्चा करते हुए कहा कि दशरथ के चारों पुत्र राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का नामकरण महर्षि वशिष्ठ ने किया. जिसके उन्होंने अर्थ बताए. इसके बाद गुरुकुल में विद्याध्ययन को जाने के प्रसंग के प्रसंग को सुनाया. उन्होंने कहा कि ”गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब आई” कुछ ही दिनों में चारों भाई बेहतर शिक्षा प्राप्त कर गए. स्वामी आगमानंद महाराज से कहा कि विद्यार्थियों को ध्यानमग्न होकर पढ़ना चाहिए. मोबाइल से बच्चे दूर रहें. रामचरितमानस पढ़ें. ”गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब आई” इस चौपाई का प्रतिदिन पाढ़ करें.

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