मदन अहल्या महाविद्यालय में मनाया गया हिंदी दिवस
नवगछिया : हिंदी दिवस के अवसर पर मदन अहल्या महाविद्यालय, नवगछिया में हिंदी विभाग द्वारा ‘भारतीय अस्मिता और हिंदी’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर संगीत विभाग की अध्यक्षा और छात्राओं ने कुलगीत और स्वागत गायन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगोष्ठी का विधिवत आरंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।
इस अवसर पर स्वगताध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। मौके पर उन्होंने कहा कि महाविद्यालय के हर व्यक्ति और छात्र ने इस आयोजन को सफल बनाने हेतु बहुत परिश्रम किया है। वे सभी बधाई के पात्र हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि प्राचीन भारत में अस्मिता की अभिव्यक्ति संस्कृत में होती थी और आधुनिक भारत की अस्मिता हिंदी में व्यक्त होती है। हमारे पुरखों ने स्वाधीनता आंदोलन हिंदी में ही लड़ा और दिलचस्प यह है कि आजादी की लड़ाई के अग्रदूतों में वैसे क्रांतिकारियों ने भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार किया जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं थी। हम रस्म अदायगी के रूप में हिंदी दिवस मनाते हैं। इच्छाशक्ति की कमी के कारण हिंदी उस रूप में स्थापित नहीं हो सकी, जैसा दर्जा उसे मिलना चाहिए था। हम उधार की भाषा में ज्ञान अर्जित करते हैं इसी लिए दशकों से कोई मौलिक अन्वेषण होता नहीं दिखता।
विशिष्ट वक्ता प्रो. बहादुर मिश्र ने इस अवसर पर कहा कि परसाई जी ने कहा था कि ‘हिन्दी दिवस के दिन, हिन्दी बोलने वाले, हिन्दी बोलने वालों से कहते हैं कि हिन्दी में बोलना चाहिए।’ हिंदी के ऐतिहासिक विकास पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार करने में अलाउद्दीन खिलजी का भी बड़ा योगदान है। कांकीनाडा अधिवेशन में कांग्रेस ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था कि सारे काम–काज हिंदी में किए जायेंगे। कानपुर अधिवेशन में यह तय हुआ कि ‘हिंदुस्तानी’ ही कामकाज की भाषा होगी। देवनागरी लिपि को ले कर भी इतिहास के संघर्षों को उन्होंने उद्घाटित किया। प्रो. मिश्र ने कहा कि हिंदी को बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने हिंदी के प्रचार–प्रसार को बढ़ाने का संदेश दिया और कहा कि व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। पत्राचार हिंदी में ही होना चाहिए। आज हिंदी दिवस नाग पंचमी जैसा हो गया है। दिन विशेष पर सर्पों की पूजा होती है अगले ही दिन लोग उनका फन कुचलने को तैयार रहते हैं, हिंदी की भी ठीक वही स्थिति है।
ऑनलाइन माध्यम से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से जुड़े प्रो. देव शंकर नवीन ने सर्व प्रथम हिंदी सेवियों को हिंदी दिवस की बधाई दी। उन्होंने युवाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्हें आज अपनी भाषा का ज्ञान नहीं है। हमारा समाज भी भाषा का महत्त्व नहीं समझता जबकि आजादी के दौर के क्रांतिकारी भाषा और साहित्य से गहरे जुड़े हुए थे। दरअसल आज का भारतीय समाज हिंदी साहित्य से इस लिए भी कट गया है क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर अंग्रेजी को लेकर अलग किस्म का सम्मोहन है।
भारत को अगर कोई भाषा आत्म निर्भर कर सकती है तो वह हिंदी है। सियासी लोगों ने भाषाओं के बीच मतभेद पैदा कर के लोगों के बीच लड़ाई का वातावरण निर्मित किया लेकिन आज दुनिया अपने उत्पाद को बेचने के लिए भाषा के बैरियर को तोड़ रही है। उन्होंने विवेकानंद से संबद्ध भी एक प्रसंग सुनाया और बताया कि कैसे उन्होंने हिंदी के सम्मान की बात की। राष्ट्रभाषा और राजभाषा हिंदी की स्थिति पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। अपनी वाणी को विराम देते हुए उन्होंने भाषाई साम्राज्यवाद से भारतीय जनता को बचने की सलाह दी।
मुख्य अतिथि स्वामी आगमानंद महाराज ने कहा कि स्त्री शिक्षा की दृष्टि से मदन अहल्या महाविद्यालय इस क्षेत्र का सबसे उत्कृष्ट महाविद्यालय है। इस महाविद्यालय की विकास यात्रा के वे स्वयं साक्षी रहे हैं। एक पौधे से बढ़ कर आज महाविद्यालय विशाल वृक्ष बन चुका हूं। प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भाषाओं का समन्वित रूप ही आज की हिंदी है। हिंदी अगर राजनीति के दांव–पेंच में न पड़ती तो आज वह राजभाषा बन चुकी होती। हिंदी को सबसे अधिक भीतरघात की कीमत चुकानी पड़ी है।
विषय प्रवेश हिंदी विभाग की अध्यक्षा डॉ. अनुराधा देवी ने कहा कि भाषा का मानव समाज की अस्मिता के साथ गहरा संबंध होता है। ‘निज भाषा उन्नति अहे’ से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने कहा कि सभी को हिंदी के विकास के लिए संकल्प लेना चाहिए। हिंदी जनभाषा के रूप में स्वीकृत है और पूरे देश को जोड़ने वाली संपर्क भाषा है।
मंच संचालन डॉ. अमरेंद्र कुमार सि…